हिन्दी विश्वकोष [भाग 7] | Hindi Vishavkosh [Bhag 7]

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Hindi Vishavkosh [Bhag 7] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ 'पोढ़ा--घारिटक स्नान करनेवालोंसे दान लेता है, घाटिया, गद्ढापुत्र । २ विद्ारक मल्ञाहोकी उपाधि! थे लोगोको नदो पार करते हैं। ३ छोटा नागपुर और पश्चिम बड़ालमें किन्‍्होंने ग्राम्य थानेंमें काम कर ठत्ति पादै है और उस कारण किसी किसी गिरिपथकी रचा और सूभागकी जमोनको भोगते हैं, उनको घाटवाल कहते है। छोटे नागपुरके घाटवालोंम बहुतसे भूमिन, खबार और वाउरी आदि जातिके हैं। घाटा (सं० स्त्रो०) घट चुरादिं-बड-टाप्‌ । ग्रोवाका पद्चादु- भाग, गलेका पिछला हिस्सा । इसका स'स्क्तत पर्याय-- ्रवटु, क्काटिका, शिरपद्यात्‌मन्धि घाट, कुकारो श्रोर धारिका हे। घाटा ( हिं० वि० ) घटी, हानि, मुकमान | घाटाल (स*० पु०) घाया सिष्माटि श्रस्यर्थे लच्‌ । १ मानि. पातिकं विद्रधिरोगका एक लक्षण । २ बड़ालके अन्तगंत मेटिनोपुर जिलेका उत्तगोय उप विभाग | यह अज्ञा० २२' रे८ तथा २२' ५९ उ० और देशा० ८७' २८ एव ८७' ঘুই पू०में अ्रवस्थित है। रकवा ३७२ वर्गमोल और जनस ' ख्या प्राय: ३२४८८ १ है। इममें पांच शहर है - घाटाल, चन्द्रकोना, खोरप्पई, रामजोवनपुर श्रीर कह्रार | इसमें १०४२ गांव लगते हैं। 3 उक्त उपविभागका एक शहर । यह अक्षा० र२र ४० उछ० ओर देशा० ८७ ४४३“ पू०में सिलाई नदोके निकट ( रामनारायणके स'योगस्थलके निकट ) अव- स्थित है। लोकसंख्या प्रायः १४५२५ होगी । पद्दले यहां डार्चोका एक कारखाना धा । यद्ध वाणिज्यका एक केन्द्र हे । रोज जहाजों द्वारा यहा मालकी आस- दनी शरीर रफ़्तनो होतो हे । यां टमरका कपड़ा वनता डे श्नोर एक म्य निसिपालिढो भो हे। ४ मेदिनोपुर জিলানী श्रन्तगत एक नगर | अभो न छुगली जिलाके ्रघोन हे । यद्ध श्र्ा० रदः ४० ॥ उ० और देशा० <७ ४५८ ४० पू०के मध्य शिलाई ओर रूपनारायण नडोके सड्भमस्थान पर अवस्थित डे। लोक संख्या लगमम वीस जार है। चावल; चौनो, रू, रेयस तथा सती वखके व्यवसायके लिये यह नगर प्रसि है वाटिका ( सं० स्त्रो० ) घाटा खाये कनु-टाप्‌। घाट हद | घाटिया ( हि ° घु० ) चाटवाल देखो। घाटो (हि ব্রী*)? হী पहाड़ोंके बोचका सह्दीणे रास्ता । २ परवेतकी ढाल, चढ़ाव उतारका पहाडो मार्ग । हे सहसूली चोजोंको ले जानेका आज्ञापत्न, रास्त का कर या सदखल चुकानेका सीकारपत । धाडसे ८ घड.उे )--टाद्िणत्यकी नोचे दर्जेकी गायक- सम्प्रदाय । ये देखनेमें काले होते हैं और आचार व्यवदार- में तथा बातचौत करनेमें मराठी किसानोंके तुल्य हैं। थे জীব মাত और बचहुरूपी बनते हैं। कसी कभी गुसांई' और वेरागियोंकी तरह जे नंगे हो कर सोख मांगा करते हैं । इसके अलावा किसो घनवानके आने पर जै. दार पगड़ो बांध कर सजधजके साथ उनके पास पहुंच जाते है ओर उनसे पेमा, दुअन्नो; चोअन्नो आदि न ले कर पगडी या घोतो जोडा अदा करते है। ये लोग अपना इतिहास ऐसे सुनाते हैं कि--रास और सीताका जव विवाह चुआ था, तव कोई गायक नहीं था; इसलिए उन्होंने काठकी ३ गायक सूति या बनाई थीं । उनमें चेतनाशक्ति प्रदान कर उनसे नोबत बजवाई थो। इन- शीसे हमारी उत्पत्ति है ।” और कोई कोई यह भो कहते | कि लड्डाके अधिपति रावणने घाड़से लोगोंको बसम- दाज्षिणात्य द्ान किया था । इनमें भोंसले, जाधव, जगताप, सोरे पोवार, सालु के ओर सिन्धे ये उपाधिया पाई जातो हं । परस्पर एकं पदवो होनेसे विवाह सम्बन्ध नहों होता । इनका धम कम वहतसा कृणवो जातिके समान ई! चारिक ( सं° पु) घण्टया चरति घण्टाठक्‌ | १ হালান্মীন্জী লীহ खुलने पर जो सुति पाठक घण्टा बजाता हे । रान्न प्रवोधसमय घग्णाशिल्पास्त घरिटका: 1१२ ६ वं षाकस्प ) पयाय- घाटिकः, चाक्रिक । ( ति ) २ धण्टावाद्क, चरटा बजानेवाला, घण्टा तदाकारं युष्पं असूयस्य ठन्‌ । ३ घुखुर । पतप यान्ति च घाटि विभेटश्य मिवादाम्‌ । (एहृतृत ० १० अ०) ( प० ) ४,शपथपूर्वक विचार करनेवाले । (पआयदित्तवि०) चारिक ब्राह्मण देव और प॑ त्रकायके अयोग्य है। इनका अन्न नहीं खाना चाहिये ।




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