हिंदी विपूवकोष : भाग 25 | Hindi Vipuvakosh : Bhag 25

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Hindi Vipuvakosh : Bhag 25 by नगेन्द्र नाथ वाशु - Nagendra Nath Vashuनगेन्द्रनाथ बसु - Nagendranath Basu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिजडा--हिडिस्वं | ६ देर करना या इधर उधरको वात कहना, दालमहूल। दिज्वडी ( दि'० पु० ) होजडा देखो | द्विजरी ( अ० पु० ) मुखकृगनी सन्‌ या सम्परतू जो सुद- शद साहवके मक्केसे मदीने भागनेकी तारीज (१५ जुलाई सन्‌ ६२२ ६० अर्थात्‌ घिक्रम-सस्वत्‌ ६७६ श्रावण शुशच र्का सार्थका )-से चछा है । दिजरी शब्दंका मूर अर्थं भागना दै । मदश्मद्‌ और उनके शिव्पोंक्रा सागना हो प्रधानत+ 'दिल्लरी' कहलाता है। मधम्मद देखे। विपक्षोंके भत्याचारसे छुटकारा पनिके लिये मदश्मद पन्‍्द्रह शिए्पों- के साथ द्वावस' देशमें जो भाग गधे, वही प्रथम दिज्ञरो है। महम्भदके एस पहली वारके भोगरेसे हिजसी अद्‌ वारम नदीं इमा है। परन्तु मक्काले मदीनामें उनकी दूसरी वारकषे पक्छायन कालसे दी दिजसे थञ्द्‌ प्रचलित इषा दै । खलोफा उमरने विद्वानाकी सम्मतिसे यद् दिनरी सन स्थिर क्षिया था | द्विमरी सन॒का वर्ष शुद्ध चान्द्र वर्ण है । सका प्रत्येक मास चन्द्रदर्शन ( शुक्र द्वितोया)से मार्य होता है और दूरे चन्द्रद्शंन तक माना जाता हैं। दर एक तारीक्ष साय॑कहांलसे आरस्त हो कर दुसरे दिन सांय॑- कार तक मानो जती दहै। इस सने वारह महीनेकि नापर एस प्रकार हैं -- १ सुहर्म दिन शस्या ३२ २ सफर 0 ६ ३ रवी डन. भ्न्छ न ३० रवी उस्सानी न २६ ५ जमदि उल अन्व ४ ३० ६ जमदि उल आलिर क २६ ও হজ ४ ३० ८ शवान দি २६ ६ रमज्ञान ८ ३० १० शब्वाल रा २६ ११ निर्काद क ३० १५ जिछहिज्ज “^ „त २६ खं घषर देल दिगली--मेवुनीपुर निरेक पर समुदतीरवत्तौ भूमाग । यह भूमाम रूपनारायणके मुहानेते থামল ভাতা ঘা भागीरथो-तीर तथा उत्तरं विश्वर जिलेकी सीमा तक एण, জু, ৪ बक्षा० २१' ३६ से २९ ११३० तथा दैशा० ८७' २७से ८८' १४५: पू०के मध्य विस्तृत है। भूपरिसाण १०१४ चर्ग पोल है। लचणक्वा व्यवसाय गवर्म एटके छास कर लेनेके पहले यहां लषणका , जोसे' क्ारवा५ चलता था । समुद्रके जारे जलकी उबाल फर यद्द लवण तैयार कियो जाता था। लीवरपुललबणकी प्रतियोगितासे यहांका कारोवार वन्द हो गया । देशावली-बिबृतिभन्थमें यह स्थान हिज्ञल नापसे वर्णित है। द्िज्ञाज ( थ० पु०) १ आवके एक भागझा লান। इसमें मक्ता और मदोना नामक नगर हैं। २ फारसो सड्जीतके १२ मुकमिपिंसे पक । हिजाव ( दण प°) १ परदा। २रज्ञा शर्म । হিজা ( অ'০ पु० ) हिजन्न दं खा । हिज्ञल (रा० पु०) पक प्रक्तारका पेड, समुद्रफल । इसे महा राष्ट्रमें पर्यालु, फलिड्डमें तोरेगणगिल, उत्कलमें फिल्लोलो, बम्बईमें समुद्रफल और परेल कहने हैं। इसका शुण-- कटु, उप्ण, पविद्त, भूत, चाततामय भीर नाना प्रहचारादि दोषनाशक । भावप्रक्ाशके मतसे यह ज्न्ये'तको तरद शुणधाला सौर विपनाशक हैं । হিল (অ০ ৫০) ক্িভী হাত याये टप अक्षरे माता सहित फहना। हिज्न ( अ० पु० ) छुद्ाई, वियोग । दिल्लीः ( स'० पु०) दह्तिपादबन्धनरञ, या शु, हाधोकं वैरे वाँधनेको रष्सी या जज्ञीर । दिडिश् (स'० पुर) एष प्रसिद्ध হাছন | भद्यभारतमें इसका बिपय ये लिक्ला है--पाएडबंगण अतुशदले भाग कर जब बन चले गये, तव पुऊ्र रांतको थे सभी सो रहे थे । केवल मीय जगे रह करर उन सर्वक रक्षा करते थे । इसके पास हो एक शाल पृक्ष पर हिदिग्ब भौर उसकी वदन छिडिश्या राक्षसी रहती थी | हिडिभ्वने वहत ভিলা बाद मनुष्यका शब्द पा फर जपने वनसे उसे देख आने कहा | हिडिस्वाने वहा ज्ञा कर देखा कि युधिष्ठिरादि सो रहे है, केवर भोम जगा है। दिड्िग्पा भोमकी भनिन्ध कमनोय कान्ति देश कर कामातुर हो गई। चह भत्यन्त खुन्दरो खोका रूप घारण कर भीमके पास गई और ওল. से वोछी, 'इस चनमें हिडिस्व नामक पक शत्पन्त क्रूर




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