नवसदभाव पदार्थ निर्णय | Nav Sadbhav Padartha Nirnaya

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Nav Sadbhav Padartha Nirnaya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९३ ) ही रहेंगे, और निन्‍्दा करने धाले निन्दक वी रहेंगे, यह किसी को अ- प्रिय ख्मे तो क्षमाता ह्रं परन्तु न्याय बाते तो निः्शंक से हौ कहना उचित है खामीने तो खकुत ढालों में किसी का भी नाम ले के अप- शब्द नदीं कहा है परन्तु हौणाचासी द्रन्यलिद्धियों ने अनेकानेक पुस्तकें छपाके खामीजो की निन्दा पेषे ऐसे शब्दों में को दे कि जैसे कोई मदिरा कफे नशे मे चूर होके नेक भाद्मी को गारी गलोज देते हैं, किन्तु भल्ठे आदमी को तो दलफा शब्द भी मुखसे उच्चारण करते शरम साती है जो जातिवन्त कुख्वन्त ओर छलज्ञावन्त होगा वो तो फिसी का नाम छेफे हर्गिज भी अपशब्द नहीं निकालेगा परन्तु अधम जाति- घाला फेवल पेटार्थों गुणशुन्य मानव शुद्ध साधु मुनिराजों से देष লহ अनेक मृषा आर दते नर्द लाजेंगे जिनको आदत निन्दा फरने फो है उन्हें निन्‍्दा किये बिना जक नहीं पड़ती नीति शास्त्रों में फदा है-- नचना परवादैन रमते दुर्जनो जनः काक सवेरखान्‌ भुक्ता विना मेध्यं न वप्यति ॥ अथात्‌ कागखा अनेक रस खाता है परन्तु श्रष्टा मे मुख दिये নিলা ভূর नदीं दोता रै वेसे ष्टी निंद निन्दा किये विना षश नदीं होता। इसलिए हमारा फहना है हे प्रियवरो ! मत पक्ष को तज फे सत्यासत्य का निर्णय करो यह मनुष्य जन्म स्यात्‌ स्यात्‌ नहीं मिलने का है, महानुभावों! आप लोगों से प्रार्थना है कि हूं षभाष को छोड़कर जिनआज्ञा घर्मं घारण करो तब कुगति से बचोगे और अपनी आत्मोन्नति दोगी-- आपका हितेच्छू श्री० जोहरी गरुलाबचन्द्‌ लुणीयां




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