सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय [खण्ड ७६ ] | Sampurna Gandhi Vanmay [ Vol 76]

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Sampurna Gandhi Vanmay [ Vol 76] by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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নন্দন अपना धर्म समझता हूँ, परन्तु जहाँतक आपका सम्बन्ध है, में चाहँगा कि आप इसे अपनी नीतिके रूपमें स्वीकार कर लें। अनुशासनवद्ध सैनिकोंकी भाँति आपको इसे पूर्णतया स्वीकार करना होगा और जव आप संघर्षमें शामिल हों, तब इसपर पूरा आचरण करना होगा” (पृ० ४२३) | आन्दोलन छिड़ जाने पर गांधीजी के निर्देश इस प्रकार थे: “हर व्यक्तिको इस वातकी खुली छूट है कि वह अहिसापर आचरण करते हुए अपना पूरा जोर छगाये। हड़तालों और दूसरे अहिसात्मक तरीकोंसे पूरा गतिरोध [पैदा कर दीजिए]। सत्याग्रहियोंको मरने के लिए, न कि जीवित रहने के लिए, घरोंसे त्रिककना होगा। उन्हें मौतकी तलाशमें फिरना चाहिए, और मौतका सामना करना चाहिए) जव लोग मरने के लिए घरसे निकलेंगे केवल तभी कौम बचेगी ” (पृ० ४४७५-४६) 1 - प्रस्ताव पारित हो जाने का मतल्व आन्दोलन आरम्भ हो जाना नहीं था। उन्होने कहा : “ वास्तविक संघपं इस क्षण नहीं शुरू हो रहा है! आपने अपने सारे अधिकार मुझे सौंप दिये हैं। अब में वाइसरायसे भेंट करने जाऊँगा और उनसे कांग्रेसकी माँग स्वीकार करने का अनुरोध कंरूँगा। इस काममें दो-तीन सप्ताह रूग जाने कौ सम्भावना है” (पृ० ४३३) । किन्तु अंग्रेजोंका इरादा गांधीजी को जरा भी समय देने का नहीं था। ९ अगस्तको प्रात: पाँच वजे उन्हें तथा वम्बईमें उपस्थित सभी शीर्षस्थ कांग्रेसी नेताओंकों सोतेसे जगाया गया और गिरफ्तार करके उनकी नजरबन्दीके लिए पहलेसे ही तय स्थानोंमें ले जाया गया। उसी दिन देश-भरमें इसी तरहकी गिरफ्तारीकी कार्रवाइयाँ की गईं। और तव जारम्भ हुआ आतंकका वह दौर जो देशके अवतकके इतिहासमें अभूतपूर्व था। इसके उत्तरमें देश-भरके विद्यार्थी, कारखाना मजदूर, किसान और बुद्धिजीवी उठ खड़े हुए। यत्र-तत्र कुछ हिंसक घटनाएँ -- सम्पत्तिका विनाश -- भी अवश्य हुईं। सरकारी प्रचारतन्जने इस सबका दोष गांधीजी के मत्थे मढ़ा। इस दोषारोपणका प्रत्याल्यान करते हुए ग्रांधीजी ने कहा कि “यदि सरकारने महामहिम वाइसरायके नाम मेरे संकल्पित पत्र और उसके . परिणामकी प्रतीक्षा की होती तो देशपर कोई मुसीवत न आई हौती। जिसकी खवर सुनने को मिल रही हं वह॒ लोचनीय वरवादी तो निश्चय ही न हुई होती। . . . छूगता है कि वड़े पेमानेपर कांग्रेसी नेताओंकी गिरफ्तारीसे छोग गुस्सेसे इतने पागल हो गये है कि उन्होंने आत्मसंयम खो दिया है। मेरा खयाल है कि जो तवाही हुई है उसके लिए सरकार जिम्मेवार हैं, व कि कांग्रेस” (पृ० ४५७) । सरकारने इस पत्र (२३ सितम्बर, १९४२) को जानवूझ्नकर दवा दिया और गांधीजी तथा वाइसरायके बीच हुआ जो पत्र-व्यवहार समाचारपत्रोंको प्रकाशनार्थ दिया गया उसमें इसे शामिल नहीं किया (पृ० ४५८, पा० टि० १) न इसी अवधियमें गांधीजी को एक दुस्सह व्यक्तिगत क्षति भी हुई। आंगाखाँ पैलेसमें गांधीजी के साथ नजरबन्दीके दिन विताते महादेव देसाई १५ अगस्तको चल बसे। चिमनलछाल शाहकों तार द्वारा यह समाचार देते हुए गांधीजी ने लिखा: “ महादेवते एक योगी और देशभक्‍तको भाँति प्राण दिये हैं। . . . अन्त्येष्टि मेरे सामने ही होगी 1 फूल रख दंगा ” (पृ० ४५३) } लेकिन जेल-अधिकारियोंते इस तारको पत्रकी तरह इत्मीनानसे भेजा '




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