लोमहर्षिनी | Lomharshini
श्रेणी : लोककथा / Folklore, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सारण किया है।
बड़े होने पर जब राम क्रोधित होता था, तब उसकी आँखें विजली के
समान चमकती थीं, उसके गहून-गम्भीर स्वर का गर्जन दुर तक सूनायी
देता था, शौर उसकी छोटी-सी वज्रमुष्टि पवेटभेदी सक्ति के समान पडती
थी। किसी और को विश्वास हो यान हौ किन्तु अम्बा भौर वृद्ध कवि दोनों
तो उसे इन्द्र ही मानते थे।
जै+-जमे घोड़े भागे बढ़ते जाते थे वैसे-वैश्े लोगा को ये दिन स्मरण
होते चले थे।
राम जब दो महीने का था तभी से इस सम्बन्ध में झगड़ा प्रारम्भ हुआ
कि वह किसका है। अम्बा तो इस पुत्र के पीछे पागल हो गयी थी और सब
काम-काज छोड़कर उसी की देखभाल में मग्न रहती थी | अम्वा और वह,
दोनो मिलकर पागल के समान राम को हाने का प्रयत्न करते थे, किन्तु
उनके प्रयत्नो का तिरस्कार करते हुए राम लेटा रहता शौर आंखें निकाल-
कर् घूरता रहता थः । वहं जव कृ चाहना तो रोता नहीं था वरन् वृषभ
के समान चित्लाता था गौर जव वहु अपने-आप हस्ता तव सा लगना
था मानो चारो मोर वसन्त रंगरलियां कर रहा हौ । वृद्ध कवि भी वर्षों के
भार को भूलकर जो कुछ-कुछ पागलपन करते थे, वह भी लोमा को याद
था। भरत, मृग गौर तृत्सु कौ संयुक्त सेना का पति, सहस्नों रणक्षेत्रों का
उद्भट वीर और शस्त्र-विद्या में सर्वोपरि आर्यश्रेष्ठ, जिसके हुंकार से सप्त-
सिन्धु कम्पायमान हो उठता था, वह कवि चायमान वृद्धा के समान हो गये '
चह अम्वा के पास की झोंपड़ी में रहने चले आये। वृद्धाओं को एकत्र करके
छोटे बच्चों को पालने-पोमने की सब कला उन्होंने सीख ली और राम की
देखभाल में माधापच्ची करने लगे।
वृद्ध कवि और अम्बा किनने ही प्रसंगों पर लड़ पड़ते थे। राम का
पलना हवा में रखा जाय या न रखा जाय, किस ओर से उसे धष लगनी
चाहिए, उसे दूध किस प्रकार पिलाया जाय, उसके भिर पर तेल मला जाय
या नहा, भने सब वातों पर वृद्ध कवि और अम्बा लड़ पड़ते थे, और
बटुकदेव / 67
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