विप्लव | Viplav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) राय वहादुर लाला वैज्ञनाथ जी की श्राशानुसार समाज खुधार का प्रचोर किया | इसी वीच में सन्‌ १६०१ में इनके पक्र मात्र पुत्र का १६ वर्ष की आयु में देहान्त दो गया । तब यह माता पिता सवको लेकर श्रागरे जा रहे श्रौर श्रव तक इनके सब भाई वहीं रहते हैं, परन्तु कई वर्षो से यह खबसे पृथक्‌ अपना जीवन अपने विचारों के श्रनुलार व्यतीत फरते हैं। क्योंकि नके विचार भ मदुप्य मात्र एक जाति है, इनका परस्पर खान पान विवाह सम्बन्ध होना चाहिए, धमे और ईश्वर झूठा ढकोलला हे 1 इस प्रकार के विचार वाते का जाति .बन्धन ` ग्रस्त कुटुम्ब मे निर्वाद न हो सकना साधारण वात है । १६०४ में आगरा आर्य समाज में एक मुललमान की शुद्धि हुई, उसके दाथ की मिठाई इन्होंने भी खाई। इनको माता ने कहा कि, तू मिठाई खाने से इनकार कर दे पर इन्होंने यह बात न मानो । करु दिन वाद्‌ थह चर्चां स्वतः द्व गई । হল্ই समाज खुधारुक दोन के कारण आर्य समाज से बड़ा प्रेम था, इन्होंने यथा साध्य आ० सामाज को सेवा करने में कभो कसर नहीं की | बहुत से लोग इन्हें श्रवतक कट्टर आय्यं समाजी ही सम- भते हैं| इनके ईश्वर का वहिष्कार नामक लेख छपने के पश्चात कुछ लोगों 'को मातम हुआ ক্ষি অহ ईश्वर सम्बन्धी অহী ঈ कुछ धांमिंक प्रेम नहीं रखते । किन्तु दिन्द्र संस्क्ृति और हिन्दू ज्ञाति की रक्चा के लिए आजभी यह प्राण विसर्जन करना अपना कर्तव्य समभते हैं ।




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