आनंद की लहरें | Aanand Ki Laharen

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Aanand Ki Laharen by गोपी कुमार - Gopi Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आनन्दकी कदर “নান रखना चाहिये किं संसारके सुर्खोकी अपेश्चा परमात्म- छख अब्यन्त विलक्षण है | अतः संसार-छुखके लिये परमात्म- छुंखकी चेष्टामें कमी बाघा नहीं पहुँचानी चाहिये ।? +कर्तन्यमें प्रमाद न करना ही सफलछूताकी कुल्ली है और उसीपर परसात्माकी कृपा होती है, आछसी और कर्तन्यविमुख छोग उसके योग्य नहीं 1 (किसीके मुँहसे कोई वात अपने विरुद्ध सुनते ही उसे अपना विरोधी मत मान बैठे, विरोधका कारण दरो जौर उसे मिटानेकी सच्चे दयसे चेष्टा करो, दो सकता है तममे ही कोई दोष हो, जो तुमे अवतक न दीख पड़ा हयो अथवा बह दही विना बुरी ' नीयतके ही किसी परिस्थितिके ग्रवाहमें वह गया हो। ऐसी स्थितिमें शान्ति और ग्रेमसे काम लेना चाहिये ।? ४ अपने हृदयको सदा ठठोछते रंहना ही साधकका कर्तव्य है, उसमें घृणा,द्वेष, हिसा, वैर, मान, अहङ्कार, कामना आदि अपना डेरा न जमा के | बुरा कहलाना अच्छा है परन्तु अच्छा कहछाकर बुरा वने रहना बहुत ही दुरा है |! भूर जाओ शुम्हरिद्वारा किसी मरणीकीं कमी कोई सेवा ह्यो जाय तो यहं अभिमान च करो कि मैने ` उसका उपकार किया दै । यह भद




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