उपासनाखंड | Upasanakhand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९२. भजनक्ते चिपयमं
य
भगवान् हैं | आप हाइ-मांसके पुतले भी नहीं हैं | आप साक्षात्
पृण ब्रह्म हैं | इसलिये मेंने सत्र तरफसे अपना मन हटाकर आप
भगवानमें आसक्ति की। इसी ग्रकार हमझोगोंकों भी सब
सांसारिक पदायोसि अपना मन हृठाकर केबछ मंगवानकों अर्पण
कर देना चाहिये |
शरालमे कहा है-“वदहरेव विरजेत्तदहरेव प्रत्रजेत्ः अर्यात्
जिस दिन वैराग्य हयो उसी द्विन विरक्त होकर चदा जाय | इसलिये
यद्वि कोई भजन तया ब्रह्मचर्वपाल्न करनेमें विरोध करे तो उसकी
बात नहीं माननी चाहिये ।
म्रार्भमं वदि कोई दम्मसे भी भजन करता हो तो भी
उसका विरोध नहीं करना चाहिये। क्योंकि साधु-सद्ठ निरन्तर
होनेसे धीरे-धीरे उसका दम्म छूट जायगा और वास्तब्रिक भजन
होने छंगेगा | इसलिये मजन न करनेकी अपेक्षा दम्मसे भी मजन
करनेवाछा उत्तम हैं। मजनकी नकछ करना भी उत्तम है, क्योंकि
उससे बह सच्चे मजनमें भी छग सकता हैं |
भाव ऋझुमाव अनन्व आलस । नाम जपत मंगर दिपसि दख ॥
जो मगवन्नाम लेगा वह झुम काम अवश्य करेगा। यदि
उसके कोई पूृर्वपाप हो तो वे स॒त्र भी मगवत्क्पासे छूट जावँगे।
भगवान् कल्पदृक्ष हैं, जो जिस इच्छासे उनके पास जाता
है, उसे वही मिठता हैं। जीवकी खामाविक चाह है कि में सदा
सुखी रहूँ ब्रह जितना ही अधघमंसे ( मायासे ) डरेगा, उतना ही
भगवत्-छुख बढ़ेगा |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...