श्री निम्बार्क प्रभा | shree Nimbark Prabha

shree Nimbark Prabha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५) फाम्राक्तत्य: नमखँतः 1 संसमेंण। रसस्यात्र. कमि उम्युज्जरुता . एधक ॥ १० ॥. इत्यड्रप्रि कुचकुकु मसापत्य वायबः क्रपात : ॥ शान्तादिकरसानोति निदाने पवकस्यर ॥; ११.॥ तुलप्री भक्ति सत्र शयु বারা: वृर्दाभाक।पिया शाक्ते संबे गत प्रकाशिनी इतिशुतेः १४. ` > ..... व्यालय भाषा ® ,- -प्रमद्धागवत तृततावस्कन्द में: जब सनकादि चेङन्ट मे गये श्र नारयण कल नयने के चरणे केमर के पराग की मिली ` तुलसी मकरन्द की वायु अपने विवर अथात नांपिका (द्वारा, सनका दकिन के हदय मे आई ओत्तर सेवी नाम নিখুত नशे বাল ই चिंत्त में' शरीर “में क्षोम करती अयी प्रमके आठों साखिक उदर्थ होते भंगें ॥१-॥ व्यास्या ग्री इष्ण के दहिने रणकः रष. कै मूल मे कमल की रखा, तापे चटी ठलषीःहरि क तहे र रूषह रदन्यसे सक्षी जीते चरण स्तन पर थरे और एर च ककम्‌ से चरण कों सलन द्वियो वाही|कमल स्थान पे सप्ली.ख्लयी के साथ तुलसी पृष्य से रहे ॥ ३ ॥ ईडम्‌ कमर € प्या ঝা কতজন ह चरणः स्तन सुग ( इष” दने मिली तुलसी 'ताको बायु पांच




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