पार्वती मंगल | Parvati Mangal

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Parvati Mangal by श्रच्युतानन्द दत्त - Shrachyutanand Datt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( -११ ) के, यौवन म पति के शौर इये मे घु के अधीन रहती हैं|) आप उन्हीं से सेरी याचन करें )” पाव॑त्ती की.इस व्युत्पन्नता पर शिवजी शीर असन्न होते हैं तथा वहाँ से चले जाते हैं। गौरी भी सखियों के साथ घर लौट शआती हैं । भद्दादेवजी सप्तर्पियों को झुलाते हैं | उनके साथ ( वशिष्ट-पत्नी ) अरुन्धती भी हैं । शिवजी के आदेश से थे हिमालय के पास जाकर लग्न स्थिर करा लाते है । बह्मा, निष्ण, हंद आदि देवता आ जरते हैं | बारात बिदा होकर हिमालय के यदह अती है नौर धूमधाम से. पार्वती का विवाह समाप्त होता है। इस घटना का वर्णन गोस्वामीजी ने भायः मानस में चर्णित शिव-विवाह के अनुसार ही किया है । ` इस घोटे-से भंथ मँ यमक, रूपक श्यौर उपमादि अल॑कारों की भरमार है । स्थान-स्थान पर उनकी टा मिलेगी 1 श्चैगार, हास्य भ्रौर भयानक ये तीन रख इसमे धा सके है । भाषा के विपय मे गोस्वामीजी ने इसमे अवधी का ही आश्रय तल्िया है। इसमें भौ उनकी अम्तनिस्यंदिनी लेखनी का प्रवाह, जहाँ देखिये, वहीं प्रवाहित है 1 इस भथ, में हंसगति नाम के छन्द श्चधिकता से श्रये है । इस चन्द्‌ के अत्येक चरण मे दकीस मात्राएँ होती है । ग्यारहवीं मात्रा पर विश्राम होता है । माज्िक छुन्द दोने के कारण इसमे लघु-गुर का नियम नहीं रहता, पर अंत में दो लघु रखने से यह श्रुत्िमधुर हो जाता है | इसके बाद वीच-घीच में हरिगीतिका चुन्द है। इसके अत्येक चरण में अद्धाईस भात्राएँ होती हैं | छन्त में दो युर रहने से यद खनने में अच्छी लगती है 1 यही शैली जानकी-मंगल की भी है। कोई-फोई कते ह कि जानकी- मंगल की रचना पार्चती-मंगल से पहले की डी है। गोस्वामीजी ने अपने अंथथों में आयः दो झुज्य भाषाओं का अयोग किया है। अवधी भाषा तो इश्देव रामजी की जत्मभूमि अवध फी. होने के कारण विशेष प्रिय थी | रामचरितमानस, रामलला-नहछ, जानकफी-




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