श्रीसमाधिशतक टीका | Shrisamadhishatak Teeka
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ई
दस तरह सुख भी आन्मा का स्वभाव है | यदि ऐसा न होता तो परवात्मा
म शरीरादि न ग्टने भी अनन्तयृख सरह कर्द सकते । जब आस्पा अपने
स्वरूप कः सच्चे গাল ক লাখ হলনা গালি বল कि उपयोग को आत्मा
से बाहर न जानें दे तव इसे स्वय यव का अजुभव आरा जायगा । जहां
तान और शांति होती है बहां सुख भी अवश्य पाया जायगा | यह बात
आत्मानुभवी भत्त भकार जानते है ।
कर
संसार मे सुख इन्द्रियननित है या अतीन्द्रियनरनितन हे । परोपकारी
पुरुषों को अपने स्व्राथ बिना दूसरे का उपकार करते हुए जो सुख्व मालूम होता
हैँ बह सुग्व मोह के घढाव से प्रमठ दाता ह--बहा यताो्द्रय सुम का प्चन्द
हैं| थोई दिन आत्मा के अभ्यास से चेतना, शांति आर शुत आत्मा में
ही है ऐसा अच्छी तरह अलुभव होजाता है । आत्मा या पुदल सै ही
द्रव्यो मे गुण् इतने ईह छि उनका ज्ञान सिवाय सर्वेत क दृसयंकोनदी दी
सक्ता । जो अत्पन्नानी दवे पार्था के थोडे गुण जान कर एकः ফন দ্দা
दुसरे से भिन्न जान सक्ते टं ! पुद्धल, धमै, अधर्म, आकाश, काल से
यात्मा क भिन्न पदिचानने क लिये यह जानना जरूरी द॑ कि यदह आत्मा
चअतन्य-स्व॒रूप, शांतिमय श्रथात् क्रोधादि विक्रार रदित, आनन्दमयी
अम्ृर्तीक, अपने असंग्ल्यात प्रदेशों को रखते हुए भी शरीर में शरीराकार
हू। परमात्मा सिद्ध भगवान् जसे निमल निरेजन निर्विकार हैं ऐसा ही
दमार् शरीर म विराजमान श्रान्मा हं । जैसा कि ओदेवसेन श्राचायने
तच्वसार में कहा हँ---
गाधा-जस्स ण कोद्य भाणो मायालोदहो च सस्स लेसलाच्रो +
“ जाइजरामरणं विय णखिरेजणो सो अहं भणखिओ॥£ ६॥
णत्धिकला संठाणं मसग्गण, गुणठाण जीवठाणाईं |
णइ लद्धडि बंधठाणा णोदय ठाणाइया केड ॥ २०
फास रस रूव गंधा सदादीया य जस्ल णात्थि पुणो |
सुद्धों चयण भावो णिरंजणो सो अहं भणिआओ॥२१९७
# न्
User Reviews
No Reviews | Add Yours...