स्वच्छन्दवाद | Swachchhandvad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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स्वच्छन्दवाद क्या?
वर्तमान व्यवस्था में मनुष्य पिंजदे में घंद पक्षी की तरह
৯৯ 2৯, [> ৩১ ৮৯ ५, ৬ ৯৯
तडफड़ाता दे-छटठपटाता है, मनुष्य फेद दे कानूनी सींक्चों में
क-याधुनिक मानव-व्यवस्था मे प्रकृति विरोध
वस्वी सदी मानध-इतिद्रात का एक महान क्रान्तिकारी युग
है। इस युग ने मानव के ब्रिचार-जगत् में जैसा तहलका मचाया
है, वैसा गत-युग में हुआ था या नहीं; इसमें सन्देद्र है। चारों
ओर उथट-पुथल मची ई है । मनुष्य के लिये एक भी आधार
ऐसा नहीं बचा है, जिसे पकड़ कर वह खड़ा हो सक्े। ईश्वर,
धरम, शासनतंत्र, सामाजिक-व्यवस्या आदि के प्रति मनुष्य में सन्देह
और জাদহল্গা उत्पन हो गये हैं ! आज के मनुष्य में असन्तोप
के कक्षण जाग पढ़े हैं; कहीं भी वह सम्तोप की श्लाँस नहीं ॐ
रा है |-बह मृग-तृष्णा की भांति सुख, शान्ति और स्वतन्त्रता
को खोज रहा है। परतंत्रता की कँटीटी-क्ाड़ी चारों ओर सघन
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