स्वच्छन्दवाद | Swachchhandvad

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Swachchhandvad by दुर्गाशंकर - Durga Shankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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< स्वच्छन्दवाद क्या? वर्तमान व्यवस्था में मनुष्य पिंजदे में घंद पक्षी की तरह ৯৯ 2৯, [> ৩১ ৮৯ ५, ৬ ৯৯ तडफड़ाता दे-छटठपटाता है, मनुष्य फेद दे कानूनी सींक्चों में क-याधुनिक मानव-व्यवस्था मे प्रकृति विरोध वस्वी सदी मानध-इतिद्रात का एक महान क्रान्तिकारी युग है। इस युग ने मानव के ब्रिचार-जगत्‌ में जैसा तहलका मचाया है, वैसा गत-युग में हुआ था या नहीं; इसमें सन्देद्र है। चारों ओर उथट-पुथल मची ई है । मनुष्य के लिये एक भी आधार ऐसा नहीं बचा है, जिसे पकड़ कर वह खड़ा हो सक्े। ईश्वर, धरम, शासनतंत्र, सामाजिक-व्यवस्या आदि के प्रति मनुष्य में सन्देह और জাদহল্গা उत्पन हो गये हैं ! आज के मनुष्य में असन्तोप के कक्षण जाग पढ़े हैं; कहीं भी वह सम्तोप की श्लाँस नहीं ॐ रा है |-बह मृग-तृष्णा की भांति सुख, शान्ति और स्वतन्त्रता को खोज रहा है। परतंत्रता की कँटीटी-क्ाड़ी चारों ओर सघन (११)




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