जीव - जगत | Jeev - Jagat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
867
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लक १ ও --
उन्टोने सारे भूमडल को घेर लिया । उनसे होट येनेवाखा कोई मी जीव पृथ्वी पर
न रह गया और वे सारे ससार के स्वामी वन गये । अपना अधिक समय स्थल पर
बिताने के कारण इन प्राणियों के पैर सुदृढ़ और खुब्की पर चलने के योग्य हो गये
लेकिन इनमे से कुछ ने अपने पैर साँपो की तरह खो दिये तो कुछ के पर पानी में
तरने के लिए पतवारनुमा हो गये और कुछ ने अपने शरीर पर एक प्रकार की झिल्ली
का एंसा विकास किया जिसकी सहायता सेवे पक्षियों की तरह आकाश में उहचे लगे |
लेकिन आकाश में उडनेवाले ये सरीसृप, जिनकी जाँघ से छेकर हाथ की उँग-
लियो तक एक मजबूत झिल्ली का विकास हुआ था, हमारी चिडियो के पूवेज नही थे।
चिड्यो के पू्वेज तौ दूसरे ही सरीमृप थे जिनको प्रत्नपृखीय या आक्रियोष्टेरिक्य
(401৩0) নন্া জালা ই। তর यद्यपि अपना जीवन अन्य मरीमृपो कं
समान ही विताते थे लेकिन इनकी विद्येषता यह थी कि इनके घरीर पर पर थे ।
उस समय के भीमकाय सरीसूपो में डाइनामोर ( 10100500705 ) सबसे
प्रसिद्ध थे जिनकी एक नही अनेक जातियाँ थी। इनमे डिप्लोडोकस ( 19910-
৭০০৩১ ) লান के डाइनासोर की छूवाई छयभग ९० फूट तक पहुँच गयी थी । यह
गाकाहारी जीव था जिमकौ दुमे ओर् गरदन तो बहुत लम्बी और पतली थी छेकिन
जिसका मस्तिप्क मुरगी के अण्डे से वडा नहीं था।
दूभरा प्रसिद्द डाइनासोर ब्राकियोमोरस ( छि2८ा॥0:4पा७५ ) था जो वजन
मे मवमे भारी था।
इसका वजन लगभग
५० टन होता था। यदि
वह आज जीवित होता
तो सडक पर खड़े ~
होकर हमारे घर की
दूसरी मजिल तक पटु ৪:৯৬
चने मे उसे जग भी. _ ० लक
রা ~> 1111
कठिनाई नोनी! ये तते यर
दोनो जोब पानी या
कीचट में रहते थे जहाँ
डाइनासोर
उन्हें अपने भारी जरीर को इधर-उधर ले जाने में ज्यादा कठिनाई नहीं पच्ती थीं।
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