पञ्चमकर्मग्रन्थ | Pancham Karm Granth

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Pancham Karm Granth by श्रीमती पानबाई - Shrimati Paanbai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब पूर्वकथन - । १३ काजक पाव्यक्रममें भी हुआ है जहॉका वातावरण असाम्प्रदायिक होता है | दूसरी दलील यह है कि अत्र साम्प्रदायिक वाडमय सम्प्रदायकी सीमा सकर दूर दूरतक पहुँचने छगा है । यहाँतक कि जर्मन विद्वान्‌ ग्लेझनप्‌ जो “जैनिस्मस””-जैनदर्शन जैसी सर्वसंग्राहक पुस्तकका प्रसिद्ध लेखक है, उसने तो ब्वेताम्बरीय कर्मग्रन्थोंका जन माषामें उल्था भी कभीका कर दिया है और बह उसी विषयमें पी० एतच्‌ डी० भी हुमा दै । अतएव मँ इस जगह थोड़ी बहुत कर्मतत्व और कर्मगासत्र सम्बन्धी चर्चा ऐतिहासिक ছি करना चाहता हू | मने अभी तक जो कु वैदिक ओर अवैदिक श्रुत तथा मार्गका अवलोकन किया है ओर उसपर जो थोड़ा बहुत विचार करिया दै उसके आधारपर मेरी रायमे कर्मतत्त्वसे सम्बन्ध रखनेवाली नीचे लिखी वस्तुध्थिति खास तरसे पलित होती है जिसके अनुसार कर्म॑तत्वविचारक सव परम्प- रा्ओकी श्ंलला ेतिहासिक क्रमसे खसङ्गत हो सकती दै । पिल प्रश्न कर्मत्व मानना या नहीं और मानना तो किस आधार 1, यह था | एक पक्ष ऐसा था जो काम और उसके साधनरूप अर्थके य अन्य कोई पुरुषार्थ मानता न था । उसकी दृष्टिमें इहलोक ही पुष्पां या | अतएव बह ठेस कोई कर्मतत्व माननेके लिए. बाधित न थाजो अच्छे बुरे जन्मान्तर या परलोककी प्रासि करानेबाला हो । यही पक्ष चार्वाक परपराके न/मसे विख्यात हुआ | पर साथही उस अति पुराने युगमें भी ऐसे चिंतक थे जो वतलाते थे कि मृत्युके बाद जन्मान्तर भी हे#। इतना हीं नहीं # मेरा ऐसा अभिप्राय है कि इस देश में किसी भी बाहरी स्थान से अवतेक घर्म या याज्ञिक मार्ग आया और वह ज्यों ज्यों फैलता गया त्यो त्यों इस देशमें उस प्रवतैक घर्मके आनेके पहलेसे ही विद्यमान निवर्तक धम अ- धिकाधिक बर पकडता गया । यान्नि भवतंक धमकी दूसरी शाखा इंरानमें |




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