अध: पतन | Aadh Patan

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Aadh Patan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ दृखरा परिच्छेद जाने किस चिन्ता में हवा है। धीरे घीरे उठ कर उसने पक सस्टृक खोखा; सन्दुक से वहुतेरी चिद्यो का पक चडकः निकाला । पन्नों की लिखावट कण्यी है,--ज्ञान पड़ता है कि क्रिसी वालिका के लिखे हैं। एक एक पत्र खोल कर माधव पढ़ने लगा--उसकी बढ़ी वड़ी आँखों में आऑखू मर आया; अन्त में एक पत्र पर दपाटप दो वृद्‌ आँसू दपक पड़े । दथेली से आँख पोछ वह फिर पत्र पढ़ने लगा | अन्त में वह सब पत्र पढ़ गया। इसके बाद उसके हृदय से वेदना के साथ एक टंढो साँस निऋल कर हवा में मिल गई । पत्रों को वटोर कर म्राधच ने सन्दुक्‌ मै चन्द्‌ कर दिया। इसके वाद चह चुपचाप आकर विछोंने पर लेट गया। बिछोने पर पड़ पड़े वह सोचने छगा,--“यह क्या हुआ ? बह भूली हुदै वात फिर हदय म जाग उडी ! बह्‌ वुद्धो द आग फिर क्यों जर उठी ? बहुत दिन कौ वात,--बहुत दिनि की भूली हुई याद्‌; अज फिर पकराप्कक्योनरै दो गद? अषक्या करूँ, चित्त बहुत चंचल दो रद्या है |” सोचते सोचते युवक उठ कर खिड़की के पास चला गया। फोठरी की वायु न गम द्वी थी और न ठंढी; फिर भी चिन्ता के मारे युवक के माथे पर मोती जैसे पसीने के वूंद ऋलक रहे धे। युवक ने खिड़की खोल दी; इसके वाद एक कुर्सी खींच कर खिद्कोके पास ही बैठ गया । सामने ही सड़क है, किन्तु इतनी रात को सड़क से कोई ज्ञाता आता नहीं। सड़क के दूसरे किनारे के मकान की एक कोटरी मँ चियग जल र्दा है |




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