गृहस्थी धर्म (भाग १ ) | Grihasthi Dharm (bhag-1)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११ )
वही मृग-जल मैं जल की कल्पना कर सकता है; जिसने कभी
कहीं जल का श्रनुमव नही किया वह् पुग-जल देख कर जल
की कल्पना ही नहीं कर सकता । इसी प्रकार परात्मा नहीं
है, यह कथन भी श्रात्मा का श्रस्तित्व ही सिद्ध करता है।
झात्मा का शअ्रस्तित्व न होता तो उसका नाम ही कहां से
भ्राता श्रौर उसके निषेव कौ श्रावश्यकता ही क्यों थी ? '
श्रात्मा का श्रस्तित्व स्वीकार करने का एक कारण
यहं है कि ससार धं जितने भी समासहीन पद हैं, उन सब
पदो के वाच्य-पदार्थ भी भ्रवश्य होते हैं । जो पद समासयुक्त
हैं उनका वाच्य पदार्थ कदाचित् नहीं भी होता है मगर जिस
पद में समास नहीं होता उस पद का वाच्य श्रवश्य होता
हैं। 'आत्मा' पद समास-रहित है श्रत. उसका वाच्य
आ्रात्मा पदार्थ श्रवश्य होना चाहिये । उदाहरण के तौर पर
रैबाशश् ग! पद वोला जाता है । शशश्ग का श्रयं है खरः
भोण का सीग । यह् समासयुक्त पद है । इसका वाच्य कोर
पदार्थ नहीं है। मगर 'शश' और “छग, शब्दो को श्रलग-
श्रलग कर दिया जाय तो दोनों का अ्रस्तित्व है । शणश भ्र्थात्त्
खरगोश और शशग श्रर्थात् सीग, दोनो ही जगत् में विद्यमान
हैं। जैसे 'शशश्य ग' नही होता, उसी प्रकार आाकाश-पुष्प!
भी नही होता । ऐसा होने पर भी भ्रगर दोनो समस्त-समा-
सयुक्त पद भ्रलग श्रलग कर दिये जायें तौ दोनो का हीं श्रस्तित्व
प्रतीत होता है । इससे भलीमांति सिद्ध है कि जितने भी
“समास-रहित व्युत्पस्त पद हैं उनके वाच्य पदार्थ का सदुभाव
श्रवश्य होता है ! श्रास्मा' पद भी समास रहित है, श्रतएवे
उसका वाच्य श्रात्मा पदार्थं শী লন ই | हाथी, घोडा,
घट-पट श्रादि जितने प्रसामासिक पद हैं, उन सब के वाच्यों
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