प्रतिशोध | Pratishodh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pratishodh  by कमलापति खत्री - Kamlapati Khatri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कमलापति खत्री - Kamlapati Khatri

Add Infomation AboutKamlapati Khatri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१५ उपन्यास बाहर निकल कर तेजी के साथ लपकते हुए इधर ही को भा रहे थे। सब लोग उन्हीं की तरफ देखने लगे । उपस्थित सब জানু मियों क तरह इन दोनों का भी तमाम बदन लाल कंपड़ों से ও উমা था। बात की बात में ये दोनों उस जगह था पहुंचे ' সী भीड़ को चीरते हुए बीच वाले चौतरे के पास আঁ पहुंचे । यहाँ पहुँच एक आदमी तो रुक गया प्रतु दुसरा चौतरे पर चढ़-गया और किसी तरह का गुप्त इशारा करने बाद ; गर:कपाल. ओर रक्त-मंडित,मुंड पर,हाथ रख उससे. धीम, स्वर में कुछ कहा । इसके बाद- घूम कर वह बोला, “भाइयो, मैंने श्राप लोगो; को अन्तिम और पांचवी परतिज्ञा,करने -से “रोक. दिया, : इसका: कुछ विशेष काररा है। यद्दि भाप लोमान, तो: मै: भृपने, इनः सियो से कुल सलाह कर्‌ लू आम বল ও | + 9 & १ ^ ` इतना कहु वहं धराद उन तीनों भरादमियों की तरफ मका 1 बहुत ही धीरे से उसने उनसे कोई ऐसी बात कहो कि वे तोनों ही चोंककरख्खंड़े हो गये तथा सभों का हाथ श्रपनी अपनी कमर पर चलाज़ाया,जिसके साथ एक-एक भुजालो लटक रही थी 1: पेरन्तु* হি সন্ত की-भागे-बाली बातों ने उन्हें. शान्तः किया नीर तब उनमें कुछ सलाह होने लगी। चारो;तरफ की शीडः उत्सुर्कता के साथ इनकी शोर देख रही थी । ५५ आधी घेड़ी के,वाद उसी व्यक्ति ने जिसमे प्रतिज्ञाएं: कहो थीं उठ/कर कहा, “भाइयो, कई कारण झा पडे है जिससे यह पांचवीं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now