विविध प्रश्न | Vividh Prash

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Vividh Prash by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ক २ ক ক ক सच्चा आस्तिक कोन ? श्राज दुनियां में जिस बड़े पैमाने पर मनुष्य मनुष्य का नाश करने में संलग्न है उसको कल्पना मात्र से हृदय में अत्यन्त घुणा और ग्लानि के भाव उतन्न हुए बिना नहीं रह सकते | कितना अत्याचार, कितनी पाशविकता और कितना पाखण्ड शोर स्वार्थ | ज़रा विचार पूर्वक सोचे तो ! सदर चपा की सभ्यता का उत्तराधिकारी मानव नेतिक अ्रधःपतन की किस पराकाए्ठा को पहुँच गया है, यह दुःख और अध्ययन का एक विपय है, जिसकी श्र से कोई भी विचारशौल व्यक्ति श्रपने ग्रापको उदासीन नहीं रख सकता । और आश्चर्य तो यह है कि मानव हीनता से श्राच्छादित इस वातावरण में भी मनुष्य को नेति- कता, मानव-हित, स्वतन्त्रता, प्रजातन्त्रवाद, न्याय और तपस्था की बात करते और ऊँची श्रावाज़ से उनके नारे लगाते ज़रा भी तो संकोच नहीं होता | क्या मनुष्य अपने आपको इससे भी अधिक भूल सकता है ? थद्द प्रश्न मन में स्व- भावतः उपस्थित होता है कि श्राखिर इसका कारण क्या हे ? कुछ लोग कहेंगे “दुनियां से धर्म और ईश्वर के प्रति विश्वास जाता रहा है । मनुष्य विधर्मी और नास्तिक बनता जा रहा है । उसीके ये परिणाम हैँ | यह पूर्व जन्मों के पापों का फल है।” किन्ठ उत्तर सन्‍्तोष देनेवाला नहीं मालूम पड़ता। किसको विधर्मों और नास्तिक माना जाए! ईश्वर-मक्ति और आस्तिकता की क्‍या पहिचान ! कौन है सच्चा आस्तिक, और कौन है सच्चा नास्तिक ? राज ही नहीं प्राचीन काल से, इतिहास इंसका साक्षी है, इस प्रकार के वीभत्स से बीमत्स और श्रमानुपिक कारणडों में ऐसे लोगों का कुछु कम हाथ नहीं रहा है जो नियमपूर्वक गिरजा, मस्जिद और मन्दिर में बुलन्द आवाज्ञ से प्रार्थना करने में कभी नहीं चूके हैं। इतना ही नहीं उन्होंने अ्रपनी प्रार्थनाओों में शक्ति ओर साधन की मांग की है, ताकि उनके द्वारा- की जानेवाली संहयर-लीला में उनको दुश्मन के विरुद्ध सफलता मिल सके । मानव इतिहास के खून से रंगे हुए. पृष्ठों की संख्या बहुत कम हो जाती यदि उनके निर्माण में मठाघीशों,




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