वातव्याधि चिकित्सा | Vat Vyadhi Chikitsa
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34.63 MB
कुल पष्ठ :
370
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हा
ल
दि जा
सिर ट्ररटा रस न पिटपिय
देर मन पम्प
प्राण जीव के साथ रहता है और जब आत्मा मुक्त हो
जाता है तब उसका प्राण प्राण में मिल जाता है-इसका
वर्णन वेद में है ।' वेद में श्वास निःध्वास कीं प्रक्रिया का
वर्णन वड़े ही सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया गया है । जिसमें.
वायु से घ्राथना की गई है कि “वायु ! तू रक्त में जो
सल है उसे दाहर निकाल क्योंकि तू सब. रोगों वग भेषज
है, तू देवों का दूत होकर विचरता है”-ा
द्वाचिमौ वातौ वात सा सिंन्धोरा परावत: ।
दक्ष ते अन्य भा वायु परान्त्यों वातु यद्रप: ॥।
हा वात वाहि भेपजं बविवात वाहि यद्ू रप: ।
रवं हि निषा भेषजणों देवानां दत ईयसे 1
“ऋग्वेद १८1१३७।२-३, अथवें. ४. ९५९३.२-३
चिनाशशील पिंड में 'जीवात्मा आयुप्सान होकर कैसे
ध्वस्थ रह सकता है इस चिन्तन धारा से ही पघभु ने मायु-
4द.की रचना सी । आयुर्वेद का माधार चिदोष सिद्धान्त है
जिसका वर्णन वेदों में उपलब्ध होता/ है । ऋग्वेद १1३४1
६ सें “'सूनवे न्िघातु कस चहल शुभरपती” के भाप्य में
सायणाचार्य लिखते हैं-“'हे शुभस्पती हे शोभनस्य जगत:
पालकौ भध्विनीकुमा री युवां. निधालुप्रणमनं वातपित्त बले-
प्मशा म् प्रशमनें शर्म सुखेन सम्यक् वहतम कुरुयमू 117”
इसीं प्रकार क्ग्वेद १!८५1१९४ में वर्णित “लिधघातुचि” की
भ्याख्यग दयानन्द सरस्वतीं ने भी इसी प्रकार से की है-
''विघातुनि, चयोवातपित्तकफा: येपु शरीरेषु तानि
शरीराणि”” । रद
न
/इसनयय्ट्ण
दर हा अप दास: > ्नडवपपय ापरागडयुण
रत धन्य हे री
एम है जिन पइय जग रण टच धथ शा शधाास्णटअतकाापव
ब्यखम्ययन (नव 1
रत टेनस्लण इतना न
स्ज्ण् 1. जन तप
या दाद
हब
जमा डे पनीससजपज रमध का रफिस्नीकन्टट्णड वअना कि
मर्हाषि 'सुश्रुतत के वायु: पालयति प्रजा:” का इस मन्त्र
में वर्णन किंया गया है-- «
ओइमू ण्तघारं चायुमर्क स्वधिदं छृचक्षसस्ते अभि-
चक्षसे रयिम् । ये पृणन्ति प्र
दक्षिणां सप्त मातरमू 1 -मथवें १८1४२
दीघे 'जीवन के .लिए मशूतमय भौपषध भंडार से मश
घाप्ति की प्ाधना वायु से. ही की गई है , क्योंकि दायु ही
“'विश्वभ्रेषज”” किया ' दिनदूत”” के नाम से न्यवह्त किया
गया है.
यददो बात ने... गृंहेप्मृतस्यनिधिहितः । .'
ततो नो देह. जीवसे ।।. --अग्वेद १०1१८६।३
यच्छस्ति सवंदा, ते' दुद्धते -
ऋतुसंन्घियों यें व्यापकरूप से फैलने वाली महामा-
रियों को रोकने के लिए “'मंपज्य यज्ञ” किये जाते थे
जिनका वर्णन वेदों में उपलब्ध होता है । इनसे वातावरण _
सुरशिगन्धमय बनने से रोग दूर हो 1 भ्रयवान चरक
से भी इस कार्ये को. वेदविह्नित कहा है तथा इस ओर
इंगित कर वायु की महत्ता प्रदर्शित की है--
य या प्रयुक्तता चेष्ट्या राजयक्ष्मा पुराजित: 1.
तां वेदविद्दितािमिष्टिमू मारोग्यार्थी प्रयोजयेद् 1।' '
ही
_ “नवद्य गोपीनाथ पारीक “गोॉपेश' शिव ०.
चिशेष सम्पादक-''वातब्याघि चिकित्सा” '
'पो० पचार (सीकर) राज ०
ज वेदों में वायु वर्णन
-चरक चिं० र।परघ्ट *.-
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