वक - संहार | Vak - Sanhar

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Vak - Sanhar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बकन्संहार [ २४ शवला जनों फी एक दिनि है छाज रहनी भी कठिन, जिनके छिए पर पुरुष-मय संसार है। यदि वे अनाथा हों यहाँ, तो फिर कुशल उनकी कहाँ ९ प्रत्येक पद्‌ पर विपद्‌ ~ पारावार है। - २५ | कुछ काम सझ्कूट में सरे इस हेतु धन-रक्षा करे, दारादि की रक्षा करे धन से सदा आचार यह अति शिष्ट है , पर, आत्मरक्षा टदे; घन से तथा दारादि से भी सबंदा। ९१५




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