तीर्थंकर - चरित्र भाग - २ | Thirthakar Charitar Bhag-ii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीर्थकर का जन्म और मोक्ष ५ ९-७७ ७-३ ७०७ कक भिषेक किया + । यह हरि राजा, भगवान्‌ शीतलनाथ स्वामी के तीथं मे हुआ । इसने अनेक राज. कन्याओं के साथ रग्न किया । इससे उत्पन्न सन्तान हरिवंश ' के नाम से विख्यात हुई । इस अवसर्पिणी काल की यह्‌ आश्चयंकारी घटना है । कालान्तर मे उस राजाके हरिणी रानी से एक पत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम ९थ्वीपति ' था । अनेक प्रकार के पाप-कर्मो का उपाजन कर के हरि ओर हरिणी नरक मे गये । हरि का पुत्र पृथ्वीपति राज्य करा स्वामी हुआ । चिरकाल तक राज्य का संचालन करके वादमें वह्‌ विरक्त हो गया ओौर तप-संयम की आराधना कर के स्वगे मे गया। पृथ्वीपति का उत्तराधिकारी महागिरिं हभ । वह भी राज्य का पालन कर प्रंत्रजित हो गया भौर तप-संयम की आराधना कर के मोक्ष प्राप्त हुमा । इस वंश मे कई राजा, त्याग- मार्ग का अनुसरण कर कें मोक्ष में गए और कई स्वगं में गए। । तीर्थकर का जन्म ओरे मोक्ष मगधदेश मे राजगृही नाम का नगर था 1 हरिवंश में उत्पन्न सुमित्र नाम का राजा वहाँ राज करता था। वह नीतिवान्‌, न्याय-परायण, प्रबल पराक्रमी ओर जिनधर्म का अनुयायी ঘা | महारानी पद्मावती उसकी अर्द्धांगना थी। वह भी उत्तम कुलोत्पन्न, सुशील- वती, उत्तम महिलाओं के गुणों से युक्त और रूप-लावण्य से अनुपम थी । राजा-रानी का भोग जीवन सुखमय व्यतीत हौ रहा था । सुरश्रेष्ठ मुनिराज का जीव, प्राणत कल्प का अपना आयुष्‌ पूणं कर के श्रावण- शुक्ला पूर्णिमा की रात्रि को श्रवण-तक्षत्र के योग में महारानी पद्मावती के गर्भ में उत्पन्न हुआ । महारानी ने चोदह महास्वप्त देखें । गर्भंकाल पूर्ण होने पर ज्येष्ठ-कृष्णा अष्टमी की रात को श्रवण-नक्षत्र वर्तते पुत्ररत्त का जन्म हुआ । दिशाकुमारियों ने सूति-कर्म किया। इन्द्रो ने जन्मोत्सव किया ओर पुत्र के गभर में आने प्रं माता, मुनि के समान सुव्रतौ का पालन करने मेँ अधिक तत्पर वनी । इससे 9 + ति. श. श. पु. च. मे लिखा है कि-- देवता ने अपनी शक्ति से उस दम्पत्ति का आयप्प कम कर दिया ।' किन्तु यह बात संगत नहीं लगती । कदाचित्‌ आयु के उत्तरकाल में उनका साहरण हुआ होगा ।




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