विनय पिटक | Vinaya Patika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
656
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ९ 1
प्रस्तावको दुह॒राते हुये उसके विपक्षे बोलनेके लिये तीन वार तक अवसर दिया जाता था, जिसे अन -
श्रावण कहते थे; ओर् अन्तमे धारणा वारा सम्मत्तिके परिणामको सुनाया जाता था।
अन्य पुराने ग्रंथोंकी भाँति इस विनय-पिटकमें वर्णित विपयोंकी सुर्खी देनेका ख्याल बहुत ही
कम रक्खा गया है । वस्तुतः यह ग्रंथ तो कंटस्थ करनेवालोंके लिये था, और उनके लिये सुखियाँ उतनी
आवश्यक न थीं । मेने सभी जगह अपेक्षित सुखियोंकों भिन्न टाइपोंमें दे दिया है। अपने पहिलेके अनु-
वादोंकी भाँति यहाँ भी अन्तमें विस्तृत परिशिष्ट दे दिया हैं । यदि पाठकोंकी सहायता प्राप्त होगी, तो
रह गई ब्रुटियोंकों दूसरे संस्करणमें ठीक कर दिया जायेगा ।
ल्हासा |
७-९-२४ ई०। राहुल सांकृत्यायन
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