विनय पिटक | Vinaya Patika

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Vinaya Patika by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ९ 1 प्रस्तावको दुह॒राते हुये उसके विपक्षे बोलनेके लिये तीन वार तक अवसर दिया जाता था, जिसे अन - श्रावण कहते थे; ओर्‌ अन्तमे धारणा वारा सम्मत्तिके परिणामको सुनाया जाता था। अन्य पुराने ग्रंथोंकी भाँति इस विनय-पिटकमें वर्णित विपयोंकी सुर्खी देनेका ख्याल बहुत ही कम रक्खा गया है । वस्तुतः यह ग्रंथ तो कंटस्थ करनेवालोंके लिये था, और उनके लिये सुखियाँ उतनी आवश्यक न थीं । मेने सभी जगह अपेक्षित सुखियोंकों भिन्न टाइपोंमें दे दिया है। अपने पहिलेके अनु- वादोंकी भाँति यहाँ भी अन्तमें विस्तृत परिशिष्ट दे दिया हैं । यदि पाठकोंकी सहायता प्राप्त होगी, तो रह गई ब्रुटियोंकों दूसरे संस्करणमें ठीक कर दिया जायेगा । ल्हासा | ७-९-२४ ई०। राहुल सांकृत्यायन




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