मगध | Magadh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९११ )
उष्णप्रखवण से कुछ दूर जो अपनी नई राजधानी बसाई उसी का नामः
राजगृह दै। गिरिज के श्रवशेय स्वरूप “जरासन्थ का अखाड़ा),.
जरासन्ध का मचानः श्रौर उसके परकोटे ग्राज भी ६। उसी से जरा
हय कर राजगणह का निर्माण विम्बिसार ने कराया। तिम्बिसार बहुत
महत्वाकांदी था | उसने पले अपने पास-पड़ोस के छोटे राजाओं को
जीता और फिर आगे बढ़ कर अंग को जीत कर सभी को मगघ में मिला
लिया । उसने कई एक़ ऐसी शादियाँ की जिनका राजनीतिक मद्दत्त था |
उसकी एक रानी कोसल देश के राजा पसेनजित की बहन थी ।
उसकी दूसरी एक रानी चेल्लना लिच्छ॒ुवि प्रमुख चेटक की वहन थी ।.
एक रानी विदेह कुमारी थी। इन वेवाहिक सम्बन्धों से विम्बसार ने
काफी ज्ञाम उठाया। कोसल की राजकुमारी के साथ व्याह के श्रवसर
पर उसे काशी का राज्य दहेज मे मिल गया, जो उस्र समय कोसल के
अधीन था। इस प्रकार मग राज्य की सीमा का उसने काफी
विस्तार किया |
पाश्वेनाथ का धमं
श्रेशिक विम्बिसार का मद्दत्व राजनीति की अपेक्षा सांस्कृतिक दृष्टि से:
अधिक दै] वह् स्वयं नाग स्तरिय था! नाग कषत्रिय परम्परा से वैदिक.
कर्मकाण्डों से श्रलग ये | वह वात्य थे। एक नाग क्षत्रिय पाश्वनाथ ने
पाश्वापत्य धर्म की स्थापना की यी, जिसे चादु्थाम धमं भी कहते द 1.
इस धर्म के मानने वाले मगध, श्रं और वजिसंघ में थे । चतिर्थाम धर्म
द्वारा जन साधारण में कुछ नेतिक चेतना भी जाग्रत हुई थी। यद्द
चोठर्याम घम---अहिंसा, सत्य, अचौर्य और अपरिग्रह था। श्रद्धिंसा
और सत्य तो श्रति प्राचीन धर्म हैं। इन्हीं दोनों सिद्धान्तों के
सहारे बबर मनुष्य बर्तरता से ऊपर उठ सका | अचौर्य और अपरिग्रह की
प्रतिष्ठा रग्भवतः पाश्वनाथ ने की है । किसी की वत्तु को बिना दिये हुये लेने:
को चोरी कहते हैं। चोरी करने वाला अपने आप में कुछ हीन--कुछ :
क
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