चतुरमहावीर | Chaturmahavir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
153
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१०)
तेया, छुटकारे वा उपाय पूछा ।
''म० मद्दावीर ने कुछ स्मित करके पूछा- जन आप लोग
अपने सिद्धान्त पर दद् हैं, तत्र आप मृत्यु से डप्ते क्यों दे ! आप
डोगों को मरना-ज,ना एक समान है ।
«महाराज | हम छोग भूछ में हैँ, परतु समझ मे नदी
भाता कि दमरी বু কমা हे ! तक हमसे णेवा दे रहा है ।”!
“माये | तकं धोखा नद देता, सन्तु मतुष्यं अमनेदो
खये पोषा देता दै । योग तक फो अपने अहंकार का गुगरम बनाना
चाहते हैं, इससे घोखा खाते हैँ | तक का अबूरा उपयोग किया
ভালা ই, इसलिये ब्यत्रद्वार में आकर वह छैँगटाकर गिर पड़ता
है । तक कहता दे # सत् का টিলাহা নহী। कता হঘাউিউ নু
नित्य ह, परन्तु जवन भीर मृस्यु में जो अन्तर दे-एक को इन
चाहने हैं दुसर से हम डरते हे, इसका भी ते कुछ कारण दे ।
श्ससे यही माइम होता हे कि क्लु एक अंश से [গম ই, হজ
अंश से अनिव्य है; एक अंश से समान या अभिन्न दे ओर दूमरे
कंश से विशेष या वित्त हे ।इस प्रार् वु तो अक धर्मलिङ्ग
है; और आप लोग एक दो धम को पकड़कर रद्द जाने हैं । इससे
व्यवद्वार में अप्नंगति आ जादो है, जिप्का फड आप देख दी रहे
हैं ।! इस बात को ऐेवर म० महावीर ने विस्तृत व्यझृपान रिया ।
अन्त में पंडितों ने कद्ा--“मद्ााराज | दम अपनी भूठ समझ रहे
हैं । इमने सचाई कं पाया है, इस खुशी में दम मरने को भी
हैया दे? `
“तब तुग्द मरना न पड़ेगा | जिस मैत की ज़रूरत थी
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