चतुरमहावीर | Chaturmahavir

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Chaturmahavir by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१०) तेया, छुटकारे वा उपाय पूछा । ''म० मद्दावीर ने कुछ स्मित करके पूछा- जन आप लोग अपने सिद्धान्त पर दद् हैं, तत्र आप मृत्यु से डप्ते क्‍यों दे ! आप डोगों को मरना-ज,ना एक समान है । «महाराज | हम छोग भूछ में हैँ, परतु समझ मे नदी भाता कि दमरी বু কমা हे ! तक हमसे णेवा दे रहा है ।”! “माये | तकं धोखा नद देता, सन्तु मतुष्यं अमनेदो खये पोषा देता दै । योग तक फो अपने अहंकार का गुगरम बनाना चाहते हैं, इससे घोखा खाते हैँ | तक का अबूरा उपयोग किया ভালা ই, इसलिये ब्यत्रद्वार में आकर वह छैँगटाकर गिर पड़ता है । तक कहता दे # सत्‌ का টিলাহা নহী। कता হঘাউিউ নু नित्य ह, परन्तु जवन भीर मृस्यु में जो अन्तर दे-एक को इन चाहने हैं दुसर से हम डरते हे, इसका भी ते कुछ कारण दे । श्ससे यही माइम होता हे कि क्लु एक अंश से [গম ই, হজ अंश से अनिव्य है; एक अंश से समान या अभिन्न दे ओर दूमरे कंश से विशेष या वित्त हे ।इस प्रार्‌ वु तो अक धर्मलिङ्ग है; और आप लोग एक दो धम को पकड़कर रद्द जाने हैं । इससे व्यवद्वार में अप्नंगति आ जादो है, जिप्का फड आप देख दी रहे हैं ।! इस बात को ऐेवर म० महावीर ने विस्तृत व्यझृपान रिया । अन्त में पंडितों ने कद्ा--“मद्ााराज | दम अपनी भूठ समझ रहे हैं । इमने सचाई कं पाया है, इस खुशी में दम मरने को भी हैया दे? ` “तब तुग्द मरना न पड़ेगा | जिस मैत की ज़रूरत थी




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