स्व धर्म सर्वस्व | Swadharm Sarvasva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपदेश ५ ६ प्र०- किन्तु उभय दशा में माता पिता तथा गुरु का यथाथ उद्देश्य क्या है? उ०- बालक को विद्वान बनाने का. प्र०- धर्मंशास्त्र ने पिशाचधर्मी को क्या उपदेश दिया ? उ०- कुछ नहीं. प्र०- क्‍यों ? उ०- क्योकि पिशाचधर्मी उन्मादी होता है. प्र०- तो क्‍या उन्मादी को उपदेश न देना चाहिये ? उ०- नहीं. प्र०- क्‍यों ? उ०- क्योंकि उसे उपदेश नहीं लगता, किन्तु वह सदुपदेश से अप्रसन्न हो कर उपदेशक का ग्रनहित कर्त्ता बन जाता है. प्र०- किस तरह ? उ०- जिस तरह वैद्य स्वाभाविक उनन्‍्मादी को झौषधि नहीं देता, क्योंकि उसे श्रौर्षाध किसी तरह गण नहीं करती, वह्‌ उल्टा वद्यसे ग्रप्रसन्न होकर उसके ग्रनहित के लिये तत्पर हो जाता है. दोहा बया दीन्ह उपदेशहित, बंदर गयो खिसाय । नोच खोज ता घोसलो, जलमे दियो बहमय ॥॥ प्रं०- पिशाच धर्मी के लिये क्‍या ग्राज्ञा है ? उ०- राजा उसे दंड दे, सृष्टिनियम के अनुकूल चलावे. प्र०- यदि वह न चले तो ? 3०- तो राजा उसे प्राशदंड तक दे सकता है. प्र०- क्यों ? उ०- क्योंकि पिशाचर्धामयों की वृद्धि से संसार में श्रशांति फेल जाती है, जिससे निर्दोष प्राणियों को कष्ट पहुंचता है. प्र-- किसका उपदेश ग्रहण करे ? उ०- केवल देवधर्मी का प्र०- देवधर्मी को किस तरह जाने ? उ०- जिसका संतोषप्रद, सत्यस्वभाव ग्राचरण व कहना सृष्टिनियम के संयम के भ्रनुकूुल व सराहनीय तथा सज्जनों द्वारा माननीय हो,




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