सुर्य्यास्त | Suryyaast

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Suryyaast by गोविन्दवल्लभ पन्त - Govindvallabh Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_सूर्य्याः में. द्वार द्वार भें काठित प्रयास कश्ने से भी मानव-फंक धनि नदी सन देती थी । स्वय प्रताप सिंह अपने ख्रीपत् को साथ लेकर सरयक्वर वह भ वृक्ष के नोचे रहते थ | उनके अखंण्य द:ख का वर्णन केश करे । उनके उस यातता पूर्ण राजपद्‌ से पथ के भिखारी की दशा शच्छी थी | यबराज अमरसिंड उस समय वालक ही थे। दल प्रकार पांच वषै धीत गय पर राज्य की छुछ मी उन्नति न हर । अदहाराजा ने देख दख प्रकारः নিখিল वास करने, ले यवनो के आक्रमणस रक्चातों द्ये सकतादहै फितु मवा के सोभाग्य-सूर्य का पनरम्युद्रय नहीं हासकता । बलाधक्रम स्वाधीनता अर प्रभाव क उन्नति के साथ दी अभ्युदय दाग । धन में रहने से यह केस हागा | राजधानी मे युद्ध के. লিন सदा तब्यार रहना आवश्यक है अत एवं उन्दोंने कमलनीर नामक द्गसस्पल्न नगर को फिए बलाथा और स्वज्ञनों साहिता वहाँ राजधानी स्थापित की । जिन कई प्रधान व्यक्तियों की महाराजा में अविचल अद्ध थी जिम्होन उत्की उन्‍्नति ओर अदन्नति मर अपनी उन्न समझी थी उनमें कुमार अमरसिंह आर कुमार रत्नि करः छोड़े तीन आदी पिशेष प्रशंसा-पांच थे। वे तीन आदमी औैरूम्बरराय देवकवरराय जार झालाराय थे । शेल्म्बर राय श्रताप तिह फे समवयस्कं य । उनदोनों का हृदय करस्थं शूत्र कं सिवा आत्मायता फसृ्रम লা লাখ था । दुव छवपरराज वृद्ध थे उनके घबल इमश भोर छोर काय्यै उनः জাল আলুলন ক साक्षी थे! मेवाड़ की जर शुदा ददे खर समय उन्होंने घनपराणधुरक्षा: वन का अश्ोनता स्वीकार £ १५)




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