चुम्बकत्व और विद्युत | Chumbakatv Or Vidyut
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
78 MB
कुल पष्ठ :
756
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1-10 | चुम्बकत्व की मूल घटनाएँ 9
109 .--चुम्बक ओर लोहे क बीच मेँ दूसरे पदाथे की उपस्थिति का
प्रभाव) यदि कोई चुम्बकीय सूची खुटका दी जावे ओर उसके ध्रुव उत्तर-दक्षिण दिशा
मे ठहर जविं तब जसा हम देख चुके हैं कि उसके निकट कोई चुम्बक लाने से वह कुछ
घूम जाती है । अब यदि इन दोनों के बीच में कड़ी, कागज, पीतल, कांच इत्थादि
किसी भी पदार्थ का एक तख्त। रख दिया जाय तो हम देखेंगे कि उस चुम्बकीय सूची
की स्थिति पर कोई असर नहीं होता। अर्थात् चुम्बक जो आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण
बरु उनके ध्रुवो पर र्गा रहा थः, उससें कुछ भी परिवर्तन नहीं होता । चुम्बकीय
बल अपना कार्य इन तख्तों के बीच में होकर भी वेसा ही करता है जैसा कि तख्तों की
अनुपस्थिति मे । केवर लोहा ही एेस। पदाथं है कि जिसका तख्ता यदि वह काफी
लम्बा-चौड़ा हो तो इस बल को बहुत घटा देता है । यहाँ तक कि यदि चुम्बकोय
सूची को लोहे के मोटे आवरण से चारों ओर घेर लें तो उस पर चुम्बक का कुछ भी
असर नहीं हो सकता । अन्य चुम्बकीय पदार्थों का भी असर ऐसा ही होता है किन्तु बहुत
कम । वास्तव में प्रत्येक पदार्थ--लकड़ी, कागज, पीतल आदि--में भी थोड़ी बहुत
चम्बकीयता होती ही है और वे भी चम्बकीय बल पर अपना असर करते ही हैं ।
किन्तु यह इतना कम होता है कि उसे प्रत्यक्ष करने के लिए अत्यंत सुग्राही यंत्रों की
आवश्यकता होती
1-10 -प्रेरण (17707100100) । चुम्बक के एक ध्रुव से लोहे की कील
लगा दीजिये । वह उसके आकर्षण के कारण वहाँ लटक जायगी । अब यदि एक
दूसरी कील इस लटकी हुईं कील के नीचे वाले सिरे से लगा दी जाय तो वह भी उससे
चिपक कर लटक जायगी । इससे ज्ञात होता है कि चुम्बक के स्पश मात्र से ही
पहिली कील भी चुम्बक बन गई। इस दूसरी कील से तीसरी, उससे चौथी और
इस ही प्रकार कई कीलें एक के नीचे एक छटक सकती हैं । प्रत्येक कील पहिली
ही की भाँति चम्बक बनती जाती है। इस प्रकार चुम्बकत्व की उत्पत्ति की
प्रेरण कहते हैँ ओर यह् चुम्बकत्व प्रेरित चस्बकस्व (7114८८६0 12061151.
कहलाता हैं ।
किन्तु इस प्रेरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि लोहे का चुम्बक से स्पर्श हो ।
उसे चम्बक के निकट रखने से ही प्रेरण हो जाता है। लोहे की एक पतली छड़ का
छोटा सा टकडा मेज पर रख दीजिये और उसके समीप लोहे का बुरादा डाल दीजिये।
चम्बकत्व विहीन होने के कारण बुरादा उस पर न चिपकेगा । किन्तु चुम्बक के एक
ध्रव को उसके एक सिरे के निकट लाते हौ बुरादा उस छड़ के दोनों सिरो पर चिपक
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