गृहलक्ष्मी | Grihalaxmi

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Grihalaxmi by श्रीयुत पंडित वासुदेव मिश्र shriyut pandit vasudev mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ ) हुआ। प्रखिद्ध चिकित्सकोंके प्रनधोंका अध्ययन कर अड़ोसी-पड़ोसी ओर दीन-दरिद्धोकी बिना. मुख्य चिकित्सा करने रगे । इसमें इन्दे खूब यश प्राप्त हुआ। बीचमें इन्होंने चिकित्सा बन्द कश्दी थी | पर मृत्युके चार-पाँच साल पहले इन्होंने फिर चिकित्सा प्रारम्प कर दी ओर अन्ततक करते रहे । बिना घूदय ओषधि देते थे। दरिद्र असमर्थोा'के पथ्पकी भी व्यवस्या कर देते थे। इनकी चिकित्खासे असंख्य मनुष्योने छाभ उठाया । आफिसके बडे साहब मि० ऐटकिन्सन गिरिश बाबूकों बहुत चाहते थे । उनके विलायत चले जने पर छोटे खाहवसे कहा-खुनौ हो जानेसे गिरिश चवूने वहांका काम छोड़ दिया ओर “अमृत बाज़ार पत्रिका”के सम्पादक शिशिर्कुमार घोष आदि देश-भक्तो द्वारा स्थापित इसण्डियन लीगमे हेड-कृुकंके पद्पर नियुक्त हुए । उस समय কন ब्रिटिश इसिडियन एसोशियेशन प्रभाव- शाखी राजनीतिक * संख्या थो। वह जमीदारों और बडे आद- मियोंको थी ओर उन्हीके हिताहितका उसे खयाल रहता था। खोटे छार सर रिचडं टेम्पलके स्वायत्त-शाखन-प्रथा प्रवर्तित करनेपर एखोशियेशनने उसके विख्द्ध आन्दोखन किया | उख खमय लीगने मध्यम श्रं णीके प्रतिनिधिरूप प्रशंसनीय काय्यं किया था । इस बीचमें লহ হাল थियेटरफ मालिक मण्डलीसे अलग हो गये আহ্‌ उन्होंने थियेटर मरडलीवालोंको किरायेपर दे दिया । गिरिश बाबूँ अध्यक्ष बनाये गये । इस समय इन्होने मेघनाद्वध, पलाशीर युद्ध, विषवृक्ष, दुर्गेशनन्दिनी आदि प्रसिद्ध काव्यो ओर उथन्यासोंको




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