सृजन और समीक्षा | Srijan Aur Sameechha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Srijan Aur Sameechha by प्रेमशंकर premshankar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रेमशंकर premshankar

Add Infomation Aboutpremshankar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रचना को भारतीय अवधारणा 13 ओर देश में साम्प्रदायिकता के रूप में धर्म की राजनीति चल निकलती है जिसकी परिणति भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन में हुई और पृथकतावादी तथा साम्प्रदायिक शक्तियां आज भी जीवित हैं । भारतीयता की आधुनिक अवधारणा में गांधी का योगदान अपनी सीमाओं में कितना महत्वपूर्ण है, इसे केवल राजनीति के सहारे नहीं समझा जा सकता। गांधी ने एक समग्र दर्शन पाने की कोशिश की और राजनीति उसका एक छोटा हिस्सा है। मध्ययुगीत सामंती समाज में पला भारत हर प्रकार के शरीरवाद में बंधा था--नारीके प्रति संकुचित दृष्टि और जातिवाद से लेकर हिसा के विभिन्‍न- रूपों तक । गांधी ने जीवन को कर्म से जोड़ा और कहा कि खाने का अधिकार उसे है जो काम करे। स्वावलम्बन का यह भाव व्यक्तित्व को स्वयं-सम्पूर्णता देता है. और ज़िदगी कमंठता की राह अपनाती है । अल्लाह-राम की बात करते हुए उन्होने दो प्रमुख संप्रदायों को पास लाने का यत्न किया और हरिजन' का पद देकर अस्पृश्यों को हीतभावना से उबारा। गांधी का सोच-विचार ग्रामजन का है जिसकी. आदशंवादी रेखाएं बहुत साप्‌ हैँ । उन्होने हमारी सामन्तकालीन हिसा को रचनात्मक मोड देने का प्रयत्न किया---अहिसा का सक्रिय दर्शन दिया, उसे नैतिक- आध्यात्मिक साहसवालों का दर्शन कहा। अपनी सदाशयता में गांधी ते हृदय- परिवतंन, ट्रस्टीशिप आदि की बात की जो वर्गसंघर्ष की अवधारणा से मेल .नहीं खाती । गांधी ने भारतीय समाज को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयत्न किया और. देश का एक समग्र व्यक्तित्व उभरकर आया। प्रांत और भाषा की सीमाएं टूटीं, आधुनिक युग में एक नयी भारतीयता का उदय हुआ जिसे सांस्कृतिक स्तर पर भारतीय नवजागरण कहा जाता है। नयी भारतीय अवधारणा जन्मी और रवीन्द्र जैसे सर्जक इसकी सर्वोत्तम उपज कहे जा सकते हैं। राजा राममोहन राय से लेकर गांधी युग तक इसका प्रसार है। गांधी युग में भारतीयता की नयी अवधारणा बनती है जब राजनीतिक स्तर पर समाज एकजुट होता दिखाई देता है। लक्ष्य सामने है--विदेशी शासन से मुक्ति । भारतीय परम्परा और इतिहास पर नयी दृष्टि डाली जाती है, उसकी. पुनर्व्याख्या के प्रयत्न होते हैं। हमारा रिक्थ हमें एक नया आत्मविश्वास देता है, . हम कई प्रकार की हीनभावना से मुक्त होते हैं। रवीन्द्र भारततीर्थ' नामक अपनी, कविता में कहते हैं--/उसी होमारग्नि में देखी, आज लाल लपट उठ रही है / इसे सहना होगा, সন में दहना होगा, यही भाग्य में लिखा है / हें मेरे मन, इस दुख को वहन करो, / सुनो, एक ही पुकार सुनो / जो भी लाज है, जो भी भय है सबको जीतो, अपमान दूर हो / यह दुःसह व्यथा जाती रहेगी, / फिर कंसा विशाल प्राण जन्म लेगा / रात बीत रही है, विशाल नीड में जननी जाग रही है इस भारत के महामानव के सागर तठ प्रर॒ / जो नई भारतीयता जन्म लेती है, उसमें प्रादेशिक.




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now