पंडित माधवप्रसाद मिश्र | Pandit Madhav Prasad Mishra
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुरारी लाल गोयल - Murari Lal Goyal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)10 पृ० माधव प्रसाद मिश्र व्यक्तित्व और कृतित्व
मिश्रजी का स्वदेश-प्रेम, समाज-सुधार तथा दृढ-चरित्र
मृत्युशैया पर पडे हुए भी देश भौर देशहित के लिए मिश्रजी का आत्तताद उनके
स्वदेश प्रेम का परिचायक है। उन्माद की अ्रवस्था मे भी वे देश की दुदशा के प्रति
चिन्तित दिखायी देते थे । झ्राधुनिक विचारको के दृष्टिकोण से असहमति का परिणाम
उन्हे अपनी उपेक्षा के रूप मे भूगतना पडा किन्तु वे जीवन-पयन्त अपने दृढ चरित्र,
निर्लोभि वृत्ति निर्भीफता, स्पष्टवादिता, स्वाभाविक देश प्रेम श्रौर श्रपने स्वाभिमानं की
रक्षा में श्राथिक अभाव से लडते हुए भी सफल रहे । वें टूट गये किन्तु झुके नही ।
मिश्रजी ने 'सुदशन” तथा “श्री राघवे द्र मे जब भारत धम महामण्डल के महामती
प० दीनदयालू शर्मा का भण्डा फोड किया तब प० दीनदयालु शर्मा ने मिश्रजी की
आर्थिक स्थिति पर चोट करते हुए कहा, “रुपये हम तब देंगे जब तुम रिपोट का
सशोवन कर दोगे” । इस पर माधव प्रसाद भिश्च का उत्तरथा किं “मैने आज तक जो
काम किये हैं, वे सब शक्ति को विचार कर किये है, घर को देखकर नहीं । ”
मिश्रजी मर्यादित सुधारवाद के पोषक थे । उनकी दृष्टि किसी विषय विशेष तक
सीमित न थी। उन्होंने मारवाडी समाज का ही नही, भ्रन्य वर्गों तथा दिशाओं में भी
सुधार के क्षेत्र मे महत््वपूण योग दिया । राघवेन्द्र की एक टिप्पणी मे लिखा है, “हिसार
प्रान्त मे सामाजिक सशोधन में भी परिश्रम मिश्रजी ने क्या, उसका फल अभी तक
उस प्रान्त के लोग उठा रहे हैं। वैश्याओ के नाच गाने आदि को कितनी ही क्रीतिया
मिश्रजी ने बन्द करायी और दृढतापूवक समाज का सशोधन किया। उस प्रान्त मरे जिन
लोगो ने विधवा विवाह करके समाज में गदर मचाना चाहा था, उनको मिश्रजी ने
जातिच्युत करके पचायती बल बढाया । ऐसे कामो मे बई बार दुष्टो ने उन्हे मार
डालने तक की धमकी दी थी। पर वे भयभीत न हुए और न अपने कत्तव्यपथ से ही
विचलित हुए। बे अपने सिद्धान्त के बडे पक्के थे। उनके दुृढनिश्चय का एक उदाहरण
यह है कि जो मित्र अपने यहा विवाह आदि के अवसर पर वैश्याओ का नाच गाना
कराते थे, वें उनके लाख आग्रह करने पर भी न जाते थे। इसके लिए उन्हे आर्थिक हानि
भी उठानी पडती थी ।१
उपयु क्त विवेचन से स्पष्ट है कि मिश्चजी की जीवन दृष्टि निस्वाथ थी । उनके
मन मे देश तथा समाज के निर्माण की प्रबल वेदना थी । वे केवल ब्राह्मण या वग विशेष
के पोषक व पक्षघरनथे अपितु भारतीय जीवन दशन के पोषक थे जिसके फलस्वरूप
वे दूसरे वर्गों के हिताहित का भी पूण ध्यान रखते थे । उनके दहावसान पर प० किशोरी
लाल गोस्वामी के कतिपय शब्द मिश्रजी के उपयुक्त विचार के प्रबल प्रमाण है। “मिश्र
जी कलकत्ता से अपने घर भिवानी चले गये और वही रहने लगे । इधर महाराज
दरभगा नरेश और स्वामी ज्ञानानन्द जी के बुलावे कलकत्ता श्रौर काशी से बराबर श्रा
1 श्री राघवेन्द्र, वषं 2, अक 7, पृष्ठ 232
2 श्री राघबेन्द्र, वं 3, अक 4 पृष्ठ 340
9
User Reviews
No Reviews | Add Yours...