तेरापंथी-हितशिक्षा | Terapanthi Hitshiksha
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-७
अथोत-(१ तीर्थक्रताका अद्भुतरूप-गन्धवाला देंह होता है, रोग
तथा पसीना भी नही होता, २ कमछकी सुगन्धी जैसा श्वास होता
ই) ই रुधिर तथा आमिप गोके दुस््च जमा सफेद होता है और ४
आदार-नीहार कोई देखने नद पात। |
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ति ) पच्चये, ३४ অনিসন্বান্টী अन्तर्गत इसतरह
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ये ही चार अतिशय, समवायांगसूत्रके ४८-४९ ( ढछिखी
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लिखे ই:
“निरामयनित्तलेया सावछद्वी, गोखीरपंढरे मंससोणिते, पउ-
मुपलगंधिए उस्सासनिस्सासे, पच्छन्ने आहारनीहारे अददिस्से
मंसचकख़णा
अथः--निरासय तथा निर्मेलभरीरवाले, गोदुग्ध जैसे सफेद
मांसरूधिरवाले, ऊमछ जेसे सुगधित अश्वासोच्छबासवाले, तथा
जिनके आहार नीदार चमेचश्चुमे न दीख पड |
अव वतला्टये, भीखमजीगें ऊपरही बातें पाई जाती थीं 1 |
जब नहीं पाई जाती था, तो फिर उसके “ जन्मकल्याणक !
कहनेवाला मद्राम॒पावादी नहीं तो ओर क्या १ | अम्तु, अब आगे
चले |
भीखमजीन इहंडरूसाथु रुगनाथजीक्रे पास दीक्षा तो উিভী,
परन्तु उसका पीछेसे बहुत पश्णताव हाने छगा | इसके सनमें
अनक प्रकारकी गकराए हैन छर्गीं। उन साथुओंके आचार-विचारोको
देख करके इसके मनमभे विचार हुआ के -मे शुद्ध मारे पकड़ ?
क्योंकि दूसरी ढालके अथम दोदेमं कदा हैः- ,, >
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