तेरापंथी-हितशिक्षा | Terapanthi Hitshiksha

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Terapanthi Hitshiksha by मुनिराज विधाविजय - Muniraj Vidhvijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-७ अथोत-(१ तीर्थक्रताका अद्भुतरूप-गन्धवाला देंह होता है, रोग तथा पसीना भी नही होता, २ कमछकी सुगन्धी जैसा श्वास होता ই) ই रुधिर तथा आमिप गोके दुस्‍्च जमा सफेद होता है और ४ आदार-नीहार कोई देखने नद पात। | সি ति ) पच्चये, ३४ অনিসন্বান্টী अन्तर्गत इसतरह हट [ 6 ये ही चार अतिशय, समवायांगसूत्रके ४८-४९ ( ढछिखी টস लिखे ই: “निरामयनित्तलेया सावछद्वी, गोखीरपंढरे मंससोणिते, पउ- मुपलगंधिए उस्सासनिस्सासे, पच्छन्ने आहारनीहारे अददिस्से मंसचकख़णा अथः--निरासय तथा निर्मेलभरीरवाले, गोदुग्ध जैसे सफेद मांसरूधिरवाले, ऊमछ जेसे सुगधित अश्वासोच्छबासवाले, तथा जिनके आहार नीदार चमेचश्चुमे न दीख पड | अव वतला्टये, भीखमजीगें ऊपरही बातें पाई जाती थीं 1 | जब नहीं पाई जाती था, तो फिर उसके “ जन्मकल्याणक ! कहनेवाला मद्राम॒पावादी नहीं तो ओर क्या १ | अम्तु, अब आगे चले | भीखमजीन इहंडरूसाथु रुगनाथजीक्रे पास दीक्षा तो উিভী, परन्तु उसका पीछेसे बहुत पश्णताव हाने छगा | इसके सनमें अनक प्रकारकी गकराए हैन छर्गीं। उन साथुओंके आचार-विचारोको देख करके इसके मनमभे विचार हुआ के -मे शुद्ध मारे पकड़ ? क्योंकि दूसरी ढालके अथम दोदेमं कदा हैः- ,, >




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