Sadachar Darpan by रघुवर प्रसाद द्विवेदी - Raghuvar Prasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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¢ ১ * सदाचार-दपशा । पाठ ९. कन्त व्य ओर अकर्तव्य की परीक्षारै 25 22302 जुष्य का कवा कत्तव्य है अयत्‌ किन २ 4 চট काय्यों को करता और किन २ कार्थ्यों म कोन करना उखका धम्मं है-इस दिषय ২৫ ২ জা विवेचन जिस शास्त्र में किया जातर >= ४१ है उसे आचार-नीति-शास्त्र कहते हैं। श्राचार-नीति का सम्बन्ध सनुष्य को' चाल-घलन से है। जिस प्रकार के आचार से मनुष्य का अपना तथा अपने से सम्बन्ध रखनेवाले और आओऔरर लोगों का यथा लाभ होता है वह अच्छा आचार कहलाता है। “खआाचारः प्रथसों ফলত अथोत्‌ आचार হী ইলাহ ছল म्थम अथवा सब्व-अ्रेष्ठ कत्तेत्य है। जिस काय्य के करने से दूसरों को हासि पहुँचना सम्भव है उसे करनेवाले को , यथार्थ लास ही ही नहीं सक्ता। यदि कोई चाहे कि दूसरों को हानि पहुँचाकर में अपना लाभ कर ज़ूँ तो यह निरी स्खल है} जितत काय्यं खे किसो दूसरे निरफराथ मनुष्य . को तनिक भी हासि पहुँचती हो उसके करनेवाले को अन्त में हानि ही उठश्नी पड़ती है। चाहे उसे कुछ समय के लिये रुपये-पसे आदि का लणग्भ भले ही हो जाय; पर ऐसा करके उसके चरित्र-भ्रष्ट हो जाने से न्त में दानि दी डोती है। जो सनुष्य इस सिद्धान्त के अनुसार कि सबके लाम में हमारा लास और एक-दो की हानि में भी हमारी १७




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