सुखसागर | Sukhsagar

Sukhsagar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'अथ भागवतमाहात्म्य ॥ ` ` पिला अध्याय । ` যাক व ज्ञान व वेराग्य की कथा ५ शान्नरकादिकं अटासीदजार ऋषीश्वरोने बीचस्थान नेमिषारण्यतीर्थ्‌ क सूत पेराणिक शिष्य वेदव्यासजी से कहा कि तुम कोई कथा व लीलां पैरमेश्वरकी ऐसी वर्णन करो जिसमें मक्ति व ज्ञान वेरोग्य अंधिक हो इस घीर कलियुगंमें ज्ञान सेसारी आदमियोंका राक्षषके समान होगयाहै इस लिये कोई सँखसे न रहकर सव किसीको ऐसा क्रोध व मोह व लोभ उत्पन्न इंआहे कि आठोंपहर उसी दुःख व्यांकुल रहते हैं कि कोई ऐसा चरित्र भंगवांनंका वन कीजिये कि कलियुगवा्सियोंकी हरिचरणोंमें भक्ति व प्रीति उत्पन्न होकर रुख मिले यह बात सुनकर सृतजी वोले तुम लोगोंने নুন अच्छी बात कलियुगवासियोंके उद्धार करनेवास्ते पूछी जो' काल- रूंपी सांप-के मुहमें पड़े हैं सो वह कथा श्रीमड्भागवर्त हे जो शुकदेवजी मंहाराजने राजा परीक्षितसे कही थी जिस समय राजाको श्ृंगी ऋषि के शाप देनेके-ठप्सन्त-ऋषीश्वरों व मनी ख्वरोंकी सभामें शुकंदेवजीने गंगा किनारे आनेकर कथा श्रीमड़ागवत सुनाना आसरम्म कियो उससमय देव- तीथं ने अशृतका ` कलश वहां.लाकर शुकदेवजी से कहा महाराज यह जगतां घडा आप लीजिये : व हमंलोगोंको कंथारुपी अमृत पिला- इग्ने यह बात सुनकर शुकदेवजी बोले तुम्हारा अग्ृत हमारे कांमका नहीं है इ्स अमृत पीने से आयुदा आदमी की देवता के बराबर होती है ओर बह्मकें एक दिनमें चोदह इन्द्र बदलजाते हें तुम्हारे अमृतसे उत्तम यंह कथारुपी अमृत भगवानका चरित्र हे जिसके सप्ताह पढ़ने व सुनने से जीव अंपर होकर कर्मी नदीं मरता व मंक्विपदवी पर पहुँचकर आवा- गंमनसे छूटि जाता है इसलिये राजा-परीक्षित -तुम्दारे- अमृत - पीनेकी दभ्या ने रखकर भांगव्तरूपी अमृत पिया चाहता है इतनी कथा सुनाकर मूंतजी ने कहा नारद मुनिक्रो सनकादिंक॑ नें सप्ाहपारायण भरी मद्भागवत की सुनांकरं.उस कथा सुनने की विधि भी वतलाई है येह वात सुनकर




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