पुरातत्त्व-निबन्धावली | Puratattva Nibandhavali

Book Image : पुरातत्त्व-निबन्धावली  - Puratattva Nibandhavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बसाढ़की खुदाई १५ চি १६५० फीट विस्तृत है । सारी खुदाईमें सिफे एक छोटोसी गणेशकी मूर्ति डा० व्लाशको मिलो थी, जिससे सिद्ध होता है कि, गढ़ धार्मिक स्थानोंसे सम्बन्य न रखता था ! गुप्त, कूपाण तया प्राकू-कुषाण मुहरोंको देखनेसे तो साफ मादूम होता ह कि, यह राज्याधिकारियोका ही केन्द्र रदा हं । वसे गढ़को छोड़कर वसाढ़में दूसरी जगह भी अकसर पुरानी मूर्तियां मिख्ती ह] गढ़से पश्चिम तरफ, वावन-पोखरके उत्तरी भीटेपर, एक छोटासा आधुनिक मन्दिर है, वहाँ आप मध्यकालीन खण्डित कितनी ही-बुद्ध, वोधि-सत्व, विष्णु, हर-गौरी, गणेश, सप्तमातृका एवं जैनतीय॑ छ्भुरोंकी--मूर्तियाँ पावेंगे । गढ़की खुदाईमें जो सवसे अधिक और महत्त्वपूर्ण चीज़ें मिलीं, वह हें भमहाराजाओं, महारानियों तया दूसरे अधिकारियोंकी स्वनामाड्ित कई सौ , मुहरें। डाक्टर व्छाश अपनी खुदाईमें ऊपरी तलूसे १० या १२ फीटतक नीचे पहुँचे थे। उनका सबसे निचला तर वह था, जहांसे आरम्भिक गुप्त- कालकों दीवारोंकी नींव शुरू होती है। ऊपरी तलसे १० फीट नीचे “महा- राजाधिराज चन्द्रगुप्त द्वितीय (३८०-४१३)-पत्नी, महाराज श्रीगोविन्द- गुप्तमाता, महादेवी श्रीघ्रुवस्वामिनी की मुहर मिली थी। जिस घरमें वह्‌ मिली यी, वह्‌ देखनेमें चहवच््चाघरसा मालूम होता था; इसलिये उस समयका साधारण तल इससे कुछ फीट ऊपर ही रहा होगा। डा० स्पूनर और नीचेतक गये। वहाँ उन्हें ई० पू० प्रथम शताब्दीकी वेसालि- 'अनुसयानकवाली मुहर मिली। डा० व्लाशको सबसे वड़ी ईंट १६३ )< १० > २ इंच नापकी मिली थी। एक तरह॒के खपड़े भी मिले, जो विहारसें आजकल पाये जानेवाले खपड़ोंसे भिन्‍न हें। इस तरहके खपड़े लखनऊ स्यूज़ियममें भी रखे ই, জী युक्‍तप्रान्तमें कहीं मिले थे। इनको लम्बाई- चौड़ाई (इंच) निम्न प्रकार है:--- ८ > २१ <ह 2८ २ ५२९ > २१ _ ८9. >~ ७९०८ २ ११.५६ २




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