अर्थागम | Arthagam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
873
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इन्कार नहीं किया जा सकता >< । भगवती सूत्रका विपय बड़ा गहन है। जिसने
ग्रन्य स॒च्रों, कर्मग्रस्थों, योकड़ों--चोल संग्रहों आदि का अभ्यास किया हो वही
इसका पूरा लाभ उठा सकता है। यद्यपि तात्विक विपय नीरस प्रतीत होता है,
तथापि उसका आनन्द वर्गानातीत है ।
प्रस्तुत प्रकाशन की विजशेषताएं--( १) कठिन शब्दोंके बिशेपार्थ टिप्पगा्में
दे दिए गए हैं ताकि पाठकंगरा सरलतापूर्वक समझ सको । कैद
(२) पुनरुवितसे चवचनेके लि चिन्ह का प्रयोग किया गया है
अर्थात् पह जसा समभे ।
(३) स्पष्टीकरण टिप्पणा व कोष्ठकमें दे दिए गए हैं ।
(४) पाठणशुद्धिका पूरा पूरा लक्ष्य रकवा गया है | |
(५) इसका सम्पादन णुद्ध प्रतियोंके आधार पर किया गया है।
(६) पाठान्तर भी यथास्थान दे दिए गए हैं
(७) अच्तमें १ अकारादि अनुक्रमशिका व शुद्धिपत्न भी दे दिया गया है 1
प्रस्तुत प्रकाशनकी धोजना श्राजसे लगभग चार व्रप पूर वनौ । परन्तु कारग-
वश २ इसमें विलम्व हुआ। गुरुदेव का स्वास्थ्य अब भी प्ूर्णाूपसे ठीक नहीं
है, फिर भी लेखन, संशोधनमें लगे ही रहते हैं | श्रांखका आपरेशन हुआ । डाक्टरों
ने पढ़ने लिखनेकी मनाई की । परन्तु आपने सम्पादन कार्यमें व्यवधान न आने
दया, आपका गुणानुवाद जितना किया जाय थोड़ा है । आपकी प्रवल पुनीत प्रेरणा
का ही प्रभाव है कि प्रस्तुत प्रकाशन द्र त्तमतिसे इस रूपमें प्रकाशित हो सका ।
इसके श्रतिरिक्त जिन जिन महानुभावोंके प्रकाशनोंसे सहायता ली गई है
तथा जिन जिन धर्मप्रेमियों ने प्रत्यक्ष व परोक्ष रूपसे इस प्रकाशनमें सहायता
देकर जिनवारीकी सेवा को है! वे सव धन्यवादके पात्र हैं ।
गुरुदेव के भ्रस्वस्थ होनेके कारण प्रूफसंशोधनादि का अधिकांश भार मेरे
व त्रिपाठी जी पर रहा 1 अतएव यदि कीं कोई च.टि रह् गर्ईहोतो वह हमारी
समभी जाय । सूज्ञगण सुधार कर पढ़ क्योकि संत हंस षय गुन गहि परिहरि
चारि विकार भ्र्थात् सज्जन लोग हंसकी तरह दूध रूपी गुरको ग्रहण करते है
व जलरूपी दोप को खोड देते हैं।
भ्रलमतिविश्तरेण
दीपावली गृरूपदकमलश्चमर
प्रकाश भवन, १२,१३ माडलवस्ती सु सित्तसिवखू
रानी भासी मागं, नड् दिल्ली ५.
...._ “विशेष जिजासु समिति हास प्रकाशित হাজী বু হী 7 जिज्ञासु समिति द्वारा प्रकाशित “राजप्रश्नीय सूत्र' देखे 1
१ पारिमाविकः
शब्दकोपके लिए प्रथम खण्ड देखें ।
२ देखिए प्रकाशकीय प्रथम खेण्ड ।
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