कब्र हमारी मुर्दा आपका | Kabr Hamari Murda Apka

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Kabr Hamari Murda Apka by एस. एल. मीणा - S. L. Mina

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 प्रकाश मे लाते है, वे मुझे काफी दिलचस्प लगते है | इनसे यह पता चलता है वि किसी जिज्ञासु ने सेद्धा/तक ज्ञान का भरयोग व्यवहारिक रूप में किस प्रकार किया । इसके साथ ही यह एक प्रकार का स्वस्थ मतोरजन भी हांता है। ग्यारह बजते-बजते मैं भोजन तक का फासला तय कर लेता हूँ। फिर ऊपर के कपडे बदलकर, मुर्दा चेहरे पर एक जिंदा पहचान चिपका कर कॉलेज के लिए रबाना हो जाता हूँ । रवाना होते समय मेरी इकलौती पत्नी मुझे इस तरह देखती है, जिस तरह कभी सयोगिता ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में भेजते समय देखा होगा। मैं आम प्राध्यापक को तरह घर से सीधा कॉलेज नहीं जाता। पहले मैं अपने एक मित्र ये घर ज्यता हूँ । उनको मेरा भाना अच्छा लगता है क्योकि मेरे पहुंचते ही उनको बतन माजने और कपडे धोने से छुटकारा मिल जाता है। उनकी श्रीमतीजी का “मूड” ठीक हो तो वे मेरे साथ मित्र को भी चाय पिलाती हैं । इसके बाद मैं मित्र $ स्कूटर पर लद॒कर कॉलेज के लिए प्रस्थान करता हूँ । (बाट--यह स्कूटर उनका खरीदा हुआ है दहज मे मिला हुआ नही है |) मेरेय नादान मित्र समझते हैं कि वे मुझे अपने स्कूटर पर बिठाकर दस हजार स्पये (स्वूटर की कीमत) की ““रिस्क” उठाते हैं, जबकि मैं समझता हूं कि में अपनी जान की रिस्क्र'ं उठाकर उनको डबल सवारी चलाने का प्रशिक्षण दता हं । रस्ते मेहम दोनो आदश शिक्षा व्यवस्या के सम्व ध में विचार विमश बरते हैं । हमारे इन भाया-भकत मित्र का कहना है वि. जब हम वग विहीन समाज की बात क रते हैं तो फिर वग यानि कक्षा विह्ीन कालेज की बात थयो नही सोचते ? प्रथम-वप, द्वितीय वप, ततीय वप, पुवद्ध, उत्तराद्‌ इस प्रबार कै वग्र भेद की जरूरत क्‍या है आखिर २ इस व्यवस्था के अनेक हानिकारक परिणाम होठ हैं ! जिन विद्याथियों को “प्रथम व 'के अतगत रखा जाता है, वे अपने आपके “तृतीय दप, के अतगत जानं वाले विद्याया के सामने द्वीम समझते हैं। इसी तरह “पूर्वाद्ध” वाले भी अपने आपको “उत्तराद/




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