उपमा कालिदासस्य | Upama Kalidassya

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Book Image : उपमा कालिदासस्य - Upama Kalidassya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपमा कालिदासस्य १५ बीजरूपिणी' पराशक्ति--जिससे विश्व-सष्टि उत्सारित होती है, वही नाव- रूपिणी पराशक्ति । इस पराशक्ति को तस्त्र में कहा गया है कामेश्वरी , ज्ञान- भात्रतनु शिव की सकन अभीए-पूति द्वार उसकी सकल कामना पूर्ण कर उस को सदानन्द मे निमग्न रखने कै कारण रौ वे कामेश्वरी है । शिव की अ्रभीष्ट पूर्ति शब्द का तात्पर्य है--झिव का सुण्छु श्रकाश । इस प्रकाश-रूपिणी देवी को तभी तो कहा गया है ज्ििव को विमल आदर्शरूपिणी । कोई जिस तरह झाप ही अपना झास्वाद नही ग्रहण कर सकता--निर्मल दर्पण मे आत्म-सौन्दर्य- माधुर्य सम्यक्‌ प्रतिफलित होने पर उस के अवलम्बन द्वारा ही जैसे झात्म- प्रास्वादन सम्भव है, वंसे ही प्रकाशरूपिणी शक्ति के विमल श्रादश (दपण) में आत्म प्रतिफलत को देखकर झिव आत्म-सम्भोग करते है । काव्य और भ्रन्यान्य कला के ধীন ম শী উস নতী सत्य देखते हैं । अमृत्त चिता, वह कितनी ही सूक्ष्म एब मूत्यवान्‌ क्यो न हो जव तक उपयुक्त रूप का श्राश्रय ले प्रवाश्ित नही होती, तबतकः वह ধনু ই, अनास्वाद्य है । कुन्तक के “वक्रोक्तिकाव्यजीवित” प्रन्य के आरम्भ में साहित्य की तात्पय॑-व्याख्या मे भी हम ठोवः वही बात देख भ्राये है, इसीलिए वुन्तक साहित्य के 'द्वितय धर्म के दोनों पक्षो पर समान जोर दे गए हैं--उनके द्वारा कथित तत्व” और “निर्मिति' ही है कालिदास वे গস গত 'शब्द'--वे ही हैं परमेश्वर एवं पार्वती 16 हमने ऊपर वाज्य व भावर्प ($9ए0ा/) भौर मवरूप (७2725507) के सम्बन्ध मे जो विवेचन क्या है, उस समस्त विवेचन वा एवं हो मुख्य लक्ष्य है । उस लट्ष्य वो स्पष्ट वर यो कहा जा सकता है--वालिदास के वाब्य मे जितने उपमा-प्रयोग (प्र्थातु मोटे तौर पर प्रलकार-प्रयोम) है, वे वालिदास वै काव्य- शारीर मे सचेतन श्रारोपित गुरा नदी है-वे उनकी श्रसाधारण बाव्य-दानी मे हो साधारण धर्म हैं--इस दृष्टि से विचार कथि चिना, महाकवि वासिदास की उपमताड्रो म जो चमत्कार हैं, ययायथ रुप से हम তলন্বা भास्वादन नहीं यर सबंगे। ० वातलिदास ने 'दुमारसभव म पावती प्रदान बरने वे प्रसय में महपि झ्रगिरा वे झुंस से बहलवाया है लमपंनिक भारत्या चुतरया योवनुमहं ति 1 (६।३€) आरती या शच्द वे साथ जैस पर्य का मिलन कराया जाता है, सुम्हारो बस्या ये साथ यैस ही महारव बा मित्रा बरासा उचित है ।




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