उत्तराध्ययन सूत्र (तृतीय खण्ड) | Uttraadhyyan Sutra (Tritiya Khand)

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Uttraadhyyan Sutra (Tritiya Khand) by आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज - Acharya Shri Hastimalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आाष-विश्लेषण एव विश्ष्टार्थ करने का प्रयास किया गया है 1 भार्यो ने एक ही शब्द के अनेक अर्थों को ध्यान मे रखकर कही-कही पर एक-एक शब्द के दो-तीन-चार अथं किये है । रेते अर्थो मे उसमे तिहि अनेक भाव- सभावनाए प्रकट होती है, जिससे पाठक को हाद समझने में सुविधा रहती है। इस विवेचन मे प्राचीन टीका ग्रन्यो के साथ ही आचार्य धी आत्माराम जी महाराजं कृतं उत्तराघ्ययन सूत्र की हिन्दी टीका त्तथा जैन विश्व भारती लाडन्‌ से प्रकाशित उत्तरज्ञययणाणि का भी आधार लिया गया है जिसमे परम्मरागत अनेक अर्थों का विशदीकरण हुआ है । में समो पूर्वाचा यो व वर्तमान विद्वानों के प्रति हार्दिक कुतज्ञता व्यक्त करता हूँ। জানাই श्री को प्रेरणा एवं मार्गेदशेव से मेने यह सम्पादन क्या है, जिसे स्वय जांचायें श्रो ने बहुत ही सूक्ष्मता के साथ पढा है, परिष्कृत किया है, परिवर्तित एन परियधित भी किया है। उनकी सूक्ष्मतिसूद््म मिरीक्षण- कुशलता देखकर जाश्चर्य होता है। अपनो सुहृठ प्रचण्ड घारणाशक्ति के बल पर आतारयेश्री प्रत्येक शब्द के अथ॑ं और भाव को आगमानुकुल स्वरूप में रखते का भ्रमास करते हैं, जो हम सबके लिए बहुत ही लाभभद है 1 यद्यपि इस सस्पादत मे आाशातीत विलम्ब हो गया जिसके लिए क्षमा-याचना करते के सिवाय अन्य कोई धारा नहीं है, किन्तु फिर भी से भाशा करता हूँ, মে অন্ন জাছাহ श्री के मार्गदर्शत में तैयार हुआ यह सस्करण स्वाध्यायी जनो के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगा । -श्रीचन्द सुराना सरसः ( १५ 3)




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