प्रसाद-साहित्य की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि | Prasad Sahitya Ki Sanskritik Prishthbhoomi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रेमदत्त शर्मा - Premdatt Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)असाद साहित्य की सांस्ट्तिक पृष्ठभूमि
ঈ सूक्ष्म तत्व और सम्यता वाह्य और भौतिक यक्षे को ग्रहण किए हुए है । एक भवन-
निर्माण मे ईंट और पत्थर का प्रयोग सभ्यता के उपकरण सदृ है वर् उसमे कला
का समावैश् सस्क्ृति का रूप है। संस्कृति का विर्माण सम्यता के परिवेश भे होता है 1
उदाहरणार्थ प्राचीन कात़ में जब वैज्ञानिक सुविधाओं और बुदधिकादिता का अभाव
খা उस समय जीवन मे पारस्परिक जटिलता का अस्तित्व कम था, परन्तु आज के इस
औतिकतावादी युग मे सम्यता के विकास के साथ मानव अपनी सानवता को भूनता
जाए रहा है। उसको स्वार्थ-मावना ने प्रबल रूप धारण कर सिया है ) उसकी अप्रन्य
भावनाये उसी में डूब जाती हैं । इस भौतिक्तावादी गुग की यह क्रान्ति, सरति का
नया कदम है जो सम्यता के वाह्य परिवेश पर आधारित है)
संस्कृति की अभिव्यक्षित के तत्व
भारतीय दर्शन के अनुसार सृति के पाच अवयव (कर्म, दर्शन, इतिहास,
वर्ण तथा रीतिरिब्राज) है? 1 बाबू गुलाबराय सस्क्ृति का विस्टृत क्षेत्र मानते हुए उस
के अन्तरगत साहित्य, सोत, कला, धर्म, दन, लोकवा तया राजनीति का समावेश
के है । विद्वानों द्वारा दिए गए सस्क्ृति के भंगो के आधार पर নিক रूपमे
निम्न प्रमु चन्वो को रख सक्ते है । इतिहास, समाज-मगठन, राजनीति, धर्म, दर्शन,
शिक्षा और कला तथा साहित्य 1 सस्कृति की अभिव्यक्ति के उबंत तत्त्वो का परिचय
तथा सरदृति से उनका सम्बन्ध देखना आवश्यक है |
इतिहास है
इतिहास मस्क्ृति का प्रमुख तत्व है । इतिहास भूतकाल की सस्नि एव
समस्त घटनाओं का लेखा-जोला करता है । इतिहास उस समय वी प्रजा, दारक,
मेनापनि, मामन्त, साजनोतिजञो एव धानक मराधादो के मभी प्रकार वे कार्यों का
विवेचन करता है। ऐतिहासिक सामग्री प्राचोनकाल वी अनुश्रूति, प्राचीन भग्तावश्षेप,
सेख, सिक्के तथा विदेक्षियों द्वारा किये गये वर्णत पर आधारित होती है । इसी के
হাতে ও समय की सस्कृति जानी जा सकती है। प्राचीन काल के प्रागेतिहामिक युग
त आधुनिक कान तकः के इतिदाम के अध्ययन ने भारतीय सस्ट्रेति का লিগ
हमारे सम्मुख प्रस्तुत हो जाता है 1
समाज-संगठन
सग्ाज में सस्दृति का विकास होता है । सास्कृतिक जीवन निर्वाह के निए
समाज-सगठन आवश्यक है । मनुष्य उसका निर्वाह, अपने बुल, ग्राम तया जनमम्ह्
१ वनब्याण, हिन्दू सस्दृति विश्रेषाह, पू० ७६
रे गरग्बराय, भारतीय सस्कृति को रूपरेखा, श्रात्म-निवेदत, पृ० १
User Reviews
No Reviews | Add Yours...