रीति स्वच्घंद काव्यधारा | Reeti Swachand Kavyadhaara

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Reeti Swachand Kavyadhaara by कृष्णचन्द्र वर्मा - Krishnachandra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्र विषय-सूची भक्ति-प्रेम कौ वैराग्य ओर भक्ति मे परिणति, निम्बा सप्रदायानुसारिणो अक्ति, बज , द्रज-प्रसाद, ब्रज-स्वरूप, द्रज-विलास, धाम-चमत्कार, यमुना यमूनायश, गोकुल गोकुल गौत, वुन्दावन वृन्दावन मुद्दा, गोवर्ध न. गिरि- ८ भजन, वरसाना, मुरली मूरलिको मोद, भक्तिः के विविध भाव पदावली और कृपाकेद, दास्य भाव, सख्य भाव, मघुर अथवा काता भाव पदावलौ, राधा के प्रति भक्ति-निवेदन भाव की भक्ति, वृषभानूपुर-सुषमा-वर्णन, प्रिया-प्रसाद, मनोरथ-मजरो ( कि भक्ति, नोतिक्थन ओर उपदेश, सासारिक अनुभवों से गर्भित नीत्योक्तियाँ। ठाबुर को भक्ति--सात्विकता, भक्ति कोटि, मौदायं भौर हरिनिष्ठा, भक्ति-भाव का स्वरूप, मीति-क्यन, जगत कौ दशा, मानवी प्रङृति का विश्लेषण, मन को प्रबोधन, मनृप्यता ओर उपदेश 1 दिजदेव की भक्ति1 ७, स्वच्छन्द कवियों के प्रबन्ध ग्रन्थ ३०० आलम इत माघधबानल-कामकन्दला--क्था, वम्तु-विवेचन, वर्णन, भवाद, माभिक स्थल, रस और भाव, चरित्र-चित्रण और मनोविज्ञान, काव्य-कोटि, कवि का प्रस्तुत प्रवध लिखने का उद्देश्य। बोघा हृत विरह-वारीश या माधवानल-कामकन्दला--कथा, वस्तु-विवेचन, वर्णन, सवाद, मामिक स्थल, रस व्यजना, काव्यकोटि । आलम ओऔर वोधा के माधवानल-कामकन्दला प्रवध॒ तुलनात्मक अध्ययन--आकार और विभाजन क्रम, प्रेरणा और बाघार, कथन भारभ करने को पद्धति, कथावस्तु मे अतर, निष्कं मौर मूल्याकन । आलम त श्याम-मनेहो--बम्तु-विवेचन, वणन, सवाद, मामि र्यत चरि्र-विद्रण ओर मनोविश्लेयण, काव्यकोटि ओर स्वना का उदेश्य । 4 दर्थं मध्याय : रोति-स्वच्छन्द काव्य का अध्ययन : कला-पक्ष ३५१ १. स्वच्छन्द धारके कवियो का कता-विपयकः दृष्टिकोण अ ३५३ रसखान को कला-विपयक दृष्टि, आलम को क्ला-विषयक दृष्टि, वनआनद को कला-विषयक दृष्टि, बोधा की कला-विषयक दृष्टि, ठाकुर वी कला-विपयक दृष्टि, द्विजदेव की कला विषयक दृष्टि। २. भाषा का स्वरूप दे रमन को भापा--अल्पि प्रयुक्त मौर नवप्रयु् शब्द, तद्भवे शब्द, अमा- मासिक परदावली, क्रियापद, सिश्वित भाषा, लोच, शब्द-विद्वति, पद-विधान या विशेष प्रयोग, कूट प्रयोग, मुहावरेदानी, सूक्ति-विधान, लोकोक्ति। जालम की भाषा--देशज शब्द, विशेष शब्द, लोच, विशेष ब्रियापद, मुहावरे और लोकोक्तियाँ, चित्मत्ता, नाद सोन्दर्य, द्वित्त वर्षों का प्रयोग, उक्ति-सौन्दर्य, भाषागत दोष, भरतो के भ अक्षर, अशुद्ध प्रयोग या शव्द विद्कति, प्रवन्ध ग्रयों मे झापा का स्वरूप । _उर्मआनद की भाषा--भाषा का स्वरूप, व्रजभापा का ठेठ रूप, नये और अप्रचलित शब्द, शब्दस्थापना, शब्द-त्रोडा, प्रयोग-




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