मार्क्सवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र के मूल सिद्धान्त | Marxwadi Arthashastra Ke Mool Sidhdanta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजनीतिक अर्थज्ञास्त्र की विपय-बस्तु | [ १५ पृथ्वी की सम्पदा, उसके खनिज पदार्थ, उसकी तरह-तरह की मिट्टियाँ तथा उसकी जलवायु ही प्राकृतिक प*रेस्थितियों का बहू कुल योग है जो मानव समाज को प्राप्त है। ये प्राकृतिक परिस्थितियाँ अत्यन्त धीरे-धीरे बदलती हैं, किसु छब्यों हारा उतके इस्तेमाल किये जाने का तरीका काफी तेज्ञी से बदख्या जाता है। इन प्राकृतिक साधनी का मानव समाज द्वारा कित्त प्रकार उपयोग किया जाता ই यह सबते अधिक निर्भर करता है प्रोयोनिक विकासि के स्तर पर । उदाहरण के लिए, कोयले को तहों में वुनियादी तौर से हजारों वर्षों में भी कोई परिवतंन नही होता; किस्तु समाज के अन्दर उनकी भूमिका थोड़े से काल के ही अन्दर बेहद बदढ गयी है। उनके भण्डारों का इस्तेमाल न तो प्राचीव काड में किया गया था और न अधिक हाछ के काछो में ही। वास्तव में, खानो की खोदायी के काम की शुरुआत तो प्िफ़ पिछती चझताब्दी के उत्तराध॑ में ही हुई थी । उत्पादन की अन्य प्राकृतिक परिस्थितियों के सम्बन्ध में भी प्राय: यही बात लागू होती है। अनेक प्राकृतिक साधन, हाल तक भी जिनका कोई आधिक महंत्व नहीं था, अब व्यापक रूप से इस्तेमारू में छाये जा रहे हैं। बहुत दिन नदी हुए जब वाकपाइटो (अल्यू- मीनियम के उत्पादन के छिए आवश्यक कच्ची घायुओं) का विस्य ही इस्तेमाव नही किया जाता था। अब उवक्े भग्डारों को खूब जोरों से काम में छाया जा रहा है। आप्वक হাট का उपभोग करने के तरीकों की खोज हो जाने के कारण, हाल में यूरेतियम के ओरो (कच्ची धातुओं) का भी काझह़ों व्यातक पैमाने पर विकास किया गया हैं ।




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