हिंदी प्रचार का इतिहास | Hindi Prachar Ka Itihas

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Hindi Prachar Ka Itihas by Jay Shankar Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी का मानक रूप झौर उसका प्रचार-प्रसार छछ में हो गया ! राम और कृष्ण नामों की संजीवनी का यह ऋण हित्दी को नहीं भूलना चाहिए । तेरहवी गती के उत्तराषध में झफ्साम (नौगॉव) के कवि माधवंदेव ने ब्रज भाषा में कृष्ण भक्ति का गान किया है । बंगाल के भरत- चन्द्र ने श्र गुजरात के प्रेमानन्द, इयामलभट्ट, दयाराम एवं भालण की कविताएँ भी हित्दी में ही है । हिन्दी के श्रेष्ठ कबि विद्यापति तथा मी राबाई को भी लोग मूलतः बंगला एवं गुजराती का कवि मानते है, जो सम्भवत$ शपनी कृष्ण-भक्ति के कारण हिन्दी मे लिखने को प्रेरित हुए । अतः ब्रज श्रौर अबधी को जोश्सरक्षण' कृष्ण शौर राम--नामों की छत्रछाया में मिला; जो छत्रछाया उन नामों के अ्रनुगमत में लोक-हुदय का निस्सीम विस्तार थी, ऐसा सरक्षण खडीवोली हिन्दी -के रूप को संभव न हुआ । मुसलमानी सस्तनत के साथ उसमे जो श्राश्रय मिला, बह उसकी प्रकृति के विपरीत था, श्रौर उसने धीरे-धीरे न केवल लाम से ही झ्पने को रेख्ता भर उदूँ कहा, बल्कि फारसी के निरन्तर प्रभाव मे उसका स्वरूप हिन्दी से दूर होता गया, जब कि उसका मूल ठेठ खडीबोली ही है । इतना होने पर भी हम इससे भ्रस्वीकार नहीं कर सकते कि झ्ाज की परिनिष्ठित (मानक) हिंत्दी के सूल--खडीबोली को प्रथम प्रअय श्र विकास देनेवाले सूसलमान शासक है । अ्रेमीर खुसरो की रचनाधों का उल्लेख ऊपर किया गया है । खडीवोली गय के विकास का इतिहास भी सैयद इंदाश्रल्ला खाँ झौर उनकी कृति “उदयशाम चरित या रानी केतकी की कहांनी” (सच १८०३) के उल्लेख के बिना भ्रधूरा ही कहां जायगा | और इन दोनों सीमाझ्ो के बीच में उदूँ भाषा के नाम पर दविखिनी हिन्दी में जो प्र्नूर गंय-पद् लिखा गया, वह सब खंडीबोली हिन्दी की वह समृद्धि है, जो उसे मुसलमान शासकों के कारण मिली हैं और इसी कारण हिन्दी के ऐतिहासिक जागरण के पूव॑ उस साहित्य-समृद्धि को हिन्दी-साहित्य से श्लग माना जाता रहा | अली आदिल शाह की रचना ऊपर उद्धृत की गयी है, ऐसे कई-एक कवि दक्खिनी हिन्दी के है जो श्रठारहवी दाती के पुर्वे हुए है, उनकी रचनाएं ट्िन्दी स्टीबोली की परम्परा से भिन्न नहीं है ' ऐसे ही एक कथि कर्ल




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