भारतीय तत्वविद्या | Bhartiya Tatva Vidha (1960) Ac 4738

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhartiya Tatva Vidha (1960) Ac 4738 by पंडित सुखलालजी संघवी

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पंडित सुखलालजी संघवी

Add Infomation About

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पुरोवचन बड़ोदा विध्वविद्यालयके तत्त्वावधातमें चलती सर सयाजीराव गायक- बाढ़ ऑनरेरियम लेक्चर सिरीज़ में व्याख्यान देनेका आमंत्रण मुझे मिला, और मैं प्रस्तुत व्याख्यान दे सका इसके लिए उक्त लेक्क सीरीज़के व्यवस्थापक और ख़ास तौर पर बड़ौदा विश्वविद्याल्यके तत्काढीन कुलपति विदुषी श्रीमती हंसाबहन मेहताका मुझे सर्वप्रथम हार्दिक आमार मानना चाहिए। उनकी ओरसे इस सम्मानप्रद सिरीज़में व्याख्यान देनेका निमंत्रण न मिल होता, तो जिस रूपमें ये व्याख्यान तैयार हय है उस रूपमे मेरे जीवनकारमे किखिनेका अवसर यद्‌ ही आता । इन व्थाख्यानेमिं चर्चित विषय मनम तो संस्कास्‍के रूपमे पढ़े हुए थे, परन्तु उन्हें सुप्रथित रूपसे व्यक्त करनेका कार्य एकाग्रता एवं परिश्रम दोनोंकी अपेक्षा रखता था। बड़ौदा विश्वव्थालयने यह कार्य करनेका अवसर मुझे दिया, यह मेरे जीवनका एक विशेष आनन्दोत्स है ऐसा मैं समझता हैँ । मैंने चाहा होता तो मैं ये व्याख्यान राष्ट्रभाषा हिन्दीमें लिख सकता था, और हिन्दीमें लिखे होते तो इनका वाचक-वतुल भी बढ़ा प्राप्त होता। इन सबके बावजूद मेंने मेरी मातृभाषा गुबरातो- को पसन्द क्रिया, उसका एक और मुख्य कारण तो यह है कि मैं मातृभाषाके माध्यम द्वारा अनेक विषयोकी शिक्षाका ही नहीं, उन-उस विषयोके उच्च और उच्चतर प्रशि्षषका भी समर्थक रहा हैं। इसलिए सेरे विधयका मात्भाषामें हो निरूपण करनेका धर्म मेरे छिए आवश्यक हो गया। इस घंर्मका पाकन करते समय मुझे भुजरातो' माकी विशिष्ट शक्तिका पहलेकी अपे्ञा अधिक भान हुआ। कोई 'भी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now