नकली और असली धर्मात्मा | Nakli Aur Asli Dharmatma
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जमनादास के बेटे अपने बाप से अलूग को दोगये परन्तु इससे
केश भीर भी ज्यादा बढ़ गया, फ्योंकि सब एक ही हजेली मै शति
थे इस वास्ते ओरतों में बातबात में तकरार होती थी और
दास के वेटों की बहुओं को इस वात को बड़ी शिकायत थी कि
सखुरजी ने घर का सारा माल तो अपनी नई जोरू के ही कब्जे में
रखा है ओर हमको वसे ही हाथ पकड कर निकाङ विया है ओर
द्ाथ उठाई कुछ नाम मात्र को देकर ही टाल दिया है, इस ही
चासूते अब यह औरतें न तो अपनी नई सास से डरती थीं और न
डसका कुछ लिहाज़ ही करती थीं बढिकि सोतनों फी तरह से
आमने सामने होकर लड॒ती थी और रान दिन «यह ही ऊधम
मवाये रखती थो, मागवन्ती थाड़ी उमर की बच्ची तो थो ही, इस
चास्ते जमानादास के लाड प्यार और हर वक्त की खुशामद से
वह ऐसो बढ़बोला, मुंहफट, जयांदराज, निर्लज्,, बेदी ओर
बेतमीजु होगई थी कि लड़ने में भटयारियों और कुंजड़ियों को भी
मात देती थी, इस यास्ते अड़ौस पड़ौस गलो मुदस्ले और बिरादरी
८दोी औरतों का इनका लड़ना एक प्रकार का षदाम का नमाशा
होगया था, वह आ आकर इजको खूब ही चहकानी और भड़काती
थीं और लछड॒या कर भला चॉंगा नप्रा शा देखा करनी थी, औरतों के
लड़ने का प्रभाव ज्ञमनादासर भौर उसकं वों पर मी बहुत कुछ
पडना था आर वह भो आपस में खिच्ने हो चले जाते थे, जमना-
दाख को अपनी ओरल से तो हर वक्त सकडों भमिड़के और हज़ारों
गालियों की बौछाड़ के सिवाय कुछ भी नहीं मिक्तता था इस
कारण अपनी औरत के सामने तो उसकी कुसे से भी अधिक
ददंश रहनी थौ, पर अव तो उसको अपने वेरो से भी चेन नहीं
मिलता था क्योंकि अव नो क्ह भी इसका पूगा > भुक्ताचि्टा करने
ल्ग मयै ये भौर कश्चो पक्षो खरीखोाटी सव कुड ही सुनते थे,
और हृथैली में ज्ञाने पर इनके पेटे की वहुब भीमे होक्रर पर
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