षतूप्रभृतादिसग्रहः | Shatuprabhratadisangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ क-षदटपाहुडक्की यह सटीक प्रति जो प्रायः शुद्ध है. जयपुरके लश्करीमनिदि- रके भण्डारसे प० इन्द्रलालजी श्चाल्लीके द्वारा प्राप्त हुईं थी। यह प्राय: शुद्ध है । ख-यह सरीक प्रति पूनेके “ डा० भाण्डारकर प्राच्यवियासंशोधनमन्दिर सै प्राप्त हुई थी । यह प्रायः अशुद्ध है । ग-यह षद्पाहुडका मूल पाठ मात्र है और बम्बईके तेरहपंथी मन्दिरके एके प्राचीन गुटके में लिखा हुआ है । घ-यंह प्रति सेठ विनोदीराम बालचन्दजीके फर्मके मालिक सेठ लहालच- न्दजी सेटठीकी कपासे प्राप्त हुईं थी । इसमें मूलके सिवाय बहुत ही संक्षिप्त संह्कृतटीका किसी अज्ञातनामा विद्वानकी की हुईं हैं। यह वि० सं० १६१० की लिखी हुई दे । लिंगप्राभ्नत ओर शीछप्राभ्षुतका संशोधन श्रीमान्‌ पं० धन्नालालजी काशलीवालकी एक ही प्रतिपरसे किया गया है । प्रयत्न करनेपर भी হল সাম্ব- तकी दूसरी प्रतियों नहीं मिल सकी । रयणसारका संशोधन जैनेन्द्र प्रेसके अध्यक्ष पं कलापा भरमाप्रा निरते द्वारा प्रकाशित मराठी अनुवादयुक्त प्रतिसे और बम्बईके तेरदपथी मन्दिरकी एक हस्तङिखित प्रतिसे किया गया है । इसकी छाया नई तैयार की गई हे । बारह अणुबेक्खा जनग्रन्थरत्नाकर-कार्याठयकी भाषाटीकासद्दित सुद्वि.! प्रतिपरसे छपाई गई है । सम्पादक महाशयने ग्रंथसंशोधन करनेमें शक्तिभर परिश्रम किया है । इ पर भी यदि अशुद्धियाँ रह गई हों तो उनके लिए क्षमाप्रार्थना है । _ बम्बर । निवेदक-_- ( माघछुदी ९६ স্তর |; नाथूराम प्रेमी, + १६७७ बि० । मंत्री ।




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