वीर - त्थुई | Vir-tthui
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बीर-त्थुई ११
[ससारे परिश्रमत. आत्मनः एवं ताभि: ताभि गतिभिः
वा योनिभि: वा सन्धिभवति न पुनर्विराममापन्नानां सिद्धानाम्,
शब्दशास्त्रडईपि एचमेव दृश्यते।]
६ अप्पा जया अप्पणो परेश कम्मसंजुत्तेण केणावि
साधे कुणेशह तया सो विकारमावज्जेह, से जहा सद्दागसे
शत पच्चाहारो ।
[ आत्मा यदा आत्मनः परेण कमैमेयुक्तन केनापि सधि
कगेति तदा स विकारमापद्यते तद् यथा शब्दागमे णच् प्रयादारः।]
१० जया अप्पा णाशपरंघ्हो होऊण पोग्गल संगच्छेइ
तया एमो जायेह सत्तहीणो जहा “इक › पचाहारम्म दसा
दीसेह ।
[ यदा आत्मा ज्ञानपराइमुखो भूत्वा पुरं संगच्छते
पा० पर सल्िकष सहिता ४।१,१०९ ।
विरामोऽवसानम् १।१।१२० ।
९ -ध० एचोऽच्ययवायाब् १।१।६९ ।
एच स्थाने यथासस्य अय् श्रय श्राव् आव् इत्येते आदेश्चा भवन्ति
प्रचि परे । नयनम । लवनम् । रायौ । नावो ।
पा० एचोऽयबायाव ६।१।७८ ।
१० शा० अस्वे १।१।७३ ।
इक स्थानेऽस्वे अचि परत तदास यव्यादेश्षो भेदति ) दध्यल्ञान |
मध्वपनय । पित्रर्थं । दध्य्टृतकाय टोयनाम् ।
पाऽ इको यणचि ६। १।७७ ।
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