हिंदी साहित्य का विकास | Hindi Sahitya Ka Vikas

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Hindi Sahitya Ka Vikas by Pt. Gopinath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी साहित्य को विकात पहित्य का प्रारंभः--- देश विशेष का साहित्य वहाँ की जनता की चित्त दत्ति एवं चिन्तन ' प्रविबिंब होता है | यह चित्तद्वति राजनैतिक, सामाजिक धार्मिक एवं के परिस्थितियों पर निर्मर रहती है । जैसे ही ये परिस्थितियाँ परिवर्तित से ही चित्तत्तितथा स्वाभाविक चिंत्ता में भो परिवतन होता है श्ौर थसाथ साहित्य में भी परिवतन होता है, क्योंकि साहित्य जन-समूह बुतति का .संचित रूप उपस्थित करता है | श्रतः हिन्दी साहित्य के ; समकने के लिए राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का त्निवाय है | गे साहित्य का संबंध आदि काल से मध्य देश स्रे रहा है श्रौर इसके पगघी, ( जिसमें सिद्ध साहित्य लिखा गया, जिसका इतिहास ७०० ई० [ है. डिंगल या पश्चिमी राजस्थानी, मैथिली, द्वधी, ब्रजभाषा, [निक खड़ी बोली श्रादि भाषाएँ त्ाती हैं । इन सभी बोलियों में हिन्दी विखरा पड़ा है। हिंग्दी साहित्य की रूप रेखा का उपयुक्त विकास ० से प्रारम्म होता है । श्रवधी, श्रन श्र खड़ी बोली निविंवाद रूप साहित्य के द्रन्तगंत श्राती हैं । उदू भाषा भो हिन्दुस्तानी की भाँति पी हिन्दी के श्रन्तगंत श्राती है । इसका विकास दिल्ली-मेरठ-श्रागरे श बोल से हुआ है। री साहित्य का प्रारम्म कब हुभ्रा यह कहना कठिन है क्योंकि कि भाषा के के लिए. कोई निश्चित समय की रेख। नहीं खींची जा सकती । कतिपय हन्दी का प्रारम्भ संवत्‌ «७० वि० से मानते हैं और प्रमाण में पुष्य घवि का <दाहरण देते हैं जो राजा मान का समासद था | किन्दु [ विद्वान हिन्दी साहित्य का इतिहास १८०० ई» से प्रारंभ करते हैं । मत विशेष न्यायसंगत भी है । हिन्दी साहित्य का काल-विभाजन -झादिकाल-- (वीर गाया ट काल या चारण-काल)-१००० ० से १३५० ई० तक | 3




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